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कहानी- स्वामी विवेकानंद और उनकी गुरु मां शारदा से जुड़ी घटना है। विदेश यात्रा पर जाने से पहले विवेकानंद मां शारदा से अनुमति और आशीर्वाद लेने पहुंचे। उन्होंने माता से कहा, 'मां, मैं संसार के दुःख को दूर करना चाहता हूं। मैं बड़ी यात्रा पर जा रहा हूं। आप मुझे आशीर्वाद में कोई ऐसी सीख दीजिए, जो विश्व कल्याण के उद्देश्य में मेरे काम आ सके।'
मां शारदा बहुत ही सहज और विद्वान थीं। वे उस समय रसोई का काम कर रही थीं। उन्होंने विवेकानंद की बातें सुनी और रसोई घर में रखे हुए एक चाकू की ओर इशारा करते हुए कहा, 'मुझे वह चाकू उठाकर दे दो।'
विवेकानंदजी ने जैसे ही चाकू उठाकर माता को दिया तो मां शारदा बोलीं, 'मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। मैं ये जान चुकी हूं कि तुम संसार की सेवा अवश्य करोगे।'
ये बात सुनकर विवेकानंद हैरान थे। उन्होंने कहा, 'मां, सिर्फ चाकू उठाकर देने से आपने ये कैसे जान लिया कि मैं संसार की सेवा कर पाऊंगा?'
मां शारदा बोलीं, 'तुमने जिस ढंग से चाकू उठाकर मुझे दिया, उससे ही मैं ये बात समझ गई हूं।'
विवेकानंदजी ने चाकू के धार वाले हिस्से को खुद की ओर करके पकड़ा और हत्थे की ओर से मां शारदा को चाकू दिया था।
मां शारदा ने कहा, 'तुम्हारी प्रवृत्ति दिखती है कि तकलीफ तुम खुद सहन करोगे और सुरक्षा दूसरों को दोगे।'
सीख- जो व्यक्ति खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुख देता है, वही व्यक्ति मानवता की सेवा कर सकता है।
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