हमारे सामने जब भी कोई अहंकारी व्यक्ति आ जाए तो उसका सामना कैसे करना चाहिए, ये बात हम बाली पुत्र अंगद से सीख सकते हैं। रामायण में सीता की खोज करते हुए श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका पहुंच गए थे।
श्रीराम रावण से युद्ध टालना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक अंतिम प्रयास और किया। श्रीराम ने अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजा, ताकि रावण सीता को लौटा दे और युद्ध टल सके।
लंका दरबार में अंगद ही पहुंचा तो एक वानर को देखकर रावण ने कहा कि तू कौन है?
अंगद ने अपना नाम बताया और कहा कि मेरे पिता का नाम बाली है। क्या आपको याद है कि आप मेरे पिता से मिल चुके हैं।
बाली का नाम सुनते ही रावण के हाव-भाव बदल गए। उसने बात करने का अंदाज बदला और कहा कि हां, हां, मुझे याद है एक बाली नाम का वानर था।
रावण के हाव-भाव देखकर और उसकी बात सुनकर अंगद हैरान था। अंगद ने सोचा कि जिसे मेरे पिता बाली ने छह महीनों तक अपनी बांह में दबाए रखा था, वह रावण बाली इतने सामान्य ढंग से याद कर रहा है।
दरअसल रावण अहंकारी था और वह खुद को ही सर्वश्रेष्ठ और सबसे शक्तिशाली मानता था और दूसरों को जताता भी था।
रावण ने अंगद से आगे कहा कि तू बाली जैसे शक्तिशाली वानर का बेटा है और राम की सेवा कर रहा है।
रावण ढोंग कर रहा था और झूठ पर झूठ पर बोल रहा था। रावण ने अंगद से पूछा कि बता तेरे पिता कहां हैं आजकल?
रावण जानता था कि राम ने बाली का वध कर दिया है, फिर भी वह ढोंग कर रहा था।
अंगद ने रावण से कहा कि अगर तुम्हें बाली की बहुत याद आ रही है तो कुछ दिन बाद तुम भी वहीं चले जाओगे, जहां श्रीराम ने बाली को भेजा है।
इसके बाद अंगद ने रावण के दरबार में घोषणा कर दी थी कि अगर किसी ने उसका पैर हिला दिया तो श्रीराम लौट जाएंगे। इस घोषणा के बाद रावण के दरबार के सभी लोगों ने उसका पैर हिलाने की कोशिश की, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली।
रावण विद्वान और विश्व विजेता था, लेकिन अंहकार की वजह से रावण नाटक कर रहा था, जैसे वह बाली को ठीक से नहीं जानता है। दूसरी ओर अंगद युवा था, लेकिन अपनी बुद्धिमानी से अंगद ने रावण का अहंकार तोड़ा।
अंगद की सीख
अगर हमारे सामने कोई अहंकारी व्यक्ति आ जाए तो हमें तर्कों के साथ उसके सवालों का सटिक जवाब देना चाहिए। जब हम तर्कों के साथ सटीक जवाब देते हैं तो अहंकारी व्यक्ति हमारे सामने कुछ बोल नहीं पाता है।
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