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माघ महीने के शुक्लपक्ष की पांचवीं तिथि को वसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है। इसे श्री पंचमी भी कहते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक, इस दिन देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इनकी पूजा की जाती है। इस पर्व को वागीश्वरी जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है। वागीश्वरी भी देवी सरस्वती का ही नाम है। इस बार 16 फरवरी, मंगलवार को पंचमी तिथि के पूरे दिन और रातभर होने से अहर्निश योग बन रहा है। ऐसे में देवी सरस्वती की पूजा और नए कामों की शुरुआत करना शुभ रहेगा।
वसंत राग से बना वसंत पंचमी
माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि से मौसम में बदलाव शुरू हो जाते हैं और प्रकृति वसंत ऋतु की ओर बढ़ने लगती है। वसंत आने की खुशी में इस दिन से वसंत राग गाने की शुरुआत हुई। शास्त्रीय संगीत में इस राग को गाने या सुनने से उमंग, उल्लास और खुशी महसूस होती है। जिससे दिमाग शांत रहता है और याददाश्त भी बढ़ती है। शास्त्रीय संगीत गायिका डॉ. ऋचा वर्मा का कहना है कि माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि से वसंत राग गाने की शुरूआत होने से ही इसे वसंत पंचमी कहा जाता है। एक ये ही ऐसा राग है जो ऋतु के आने से पहले ही गाना शुरू किया जाता है, बाकी अन्य राग ऋतुओं के शुरू होने पर ही गाए जाते हैं।
कुछ संगीत ग्रंथों के मुताबिक वसंत राग पंचवक्त्र शिव यानी पंचमुखी शिव के पांचवें मुख से निकला है। जो कि श्री पंचमी यानी वसंत पंचमी (फरवरी-मार्च) से हरिशयनी एकादशी (जून-जुलाई) तक गा सकते हैं। लेकिन संगीत दामोदर ग्रंथ का कहना है कि इसे सिर्फ वसंत ऋतु में ही गाना चाहिए।
वसंत पंचमी 16 को लेकिन वसंत ऋतु 14 मार्च से
बसंत पंचमी देवी सरस्वती का प्राकट्य उत्सव है। इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत नहीं होती है। बल्कि ये पर्व मां सरस्वती की पूजा के लिए है। काशी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के मुताबिक, जब सूर्य मीन राशि में आता है उसके बाद से बसंत ऋतु आती है। उन्होंने बताया कि पिछले हजारों सालों में वसंत पंचमी पर कभी वसंत ऋतु शुरू हुई ही नहीं। इस दिन देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे श्री पंचमी कहते हैं।
सरस्वती प्राकट्य
डॉ. मिश्र बताते हैं कि चैत्र महीने के शुक्लपक्ष की पहली तिथि पर ब्रह्माजी ने सृष्टि बनाई। इससे वो बहुत खुश थे। लेकिन, कुछ दिनों में उन्हें लगा कि दुनिया के जीव नीरसता से जी रहे हैं। उनमें कोई उल्लास, उत्साह या चेतना नहीं है। तब उन्होंने अपने कमंडल से थोड़ा सा पानी जमीन पर छिड़का। उस पवित्र जल से सफेद कपड़े पहने, हाथ में वीणा लिए सरस्वती प्रकट हुईं। उन्हीं के साथ धरती पर विद्या और ज्ञान का पहला कदम पड़ा। वह वसंत पंचमी का दिन था। इसलिए, इसे ज्ञान की देवी के प्राकट्य का दिन कहा जाता है। इसके बाद देवी सरस्वती ने इस दुनिया में चेतना भर दी।
माघ महीने की पंचमी तिथि पर देवी सरस्वती के प्रकट होने से देवताओं और ऋषि-मुनियों में उल्लास और आनंद छा गया था। फिर सभी ने वेदों की ऋचाओं से देवी की स्तुति की। चुंकि संस्कृत में उल्लास और आनंद की स्थिति को ही वसंत कहा गया है। इसलिए देवी सरस्वती के प्रकट होने पर इस दिन को वसंत पंचमी कहा जाने लगा।
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