हर साल अक्षय तृतीया के बाद उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा शुरू हो जाती है। जो कि यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री फिर केदारनाथ और आखिरी में बद्रीनाथ धाम पर पूरी होती है। इन चारों जगहों को पवित्र धाम माना जाता है। इसके साथ ही इनका धार्मिक महत्व भी है। जीवनदायिनी गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं। वहीं भगवान शिव का 11 वां ज्योतिर्लिंग केदारनाथ और भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। माना जाता है कि इस पवित्र चारधाम यात्रा में गंगा, यमुना के बाद भगवान शिव और विष्णु के दर्शन से पाप खत्म हो जाते हैं।
उत्तराखंड के चारधाम और उनका महत्व
गंगोत्री
पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ गंगा को धरती पर लाए थे, लेकिन गंगोत्री को ही मां गंगा का उद्गम स्थान माना जाता है। मां गंगा के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि गोरखा (नेपाली) ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी दौरान गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था।
यमुनोत्री
यमुनोत्री मंदिर निर्माण के बारे में बताया जाता है कि टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए ये मंदिर बनवाया था, लेकिन भूकम्प से मंदिर विध्वंस हो चुका था इसके बाद मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुई बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है |
केदारनाथ धाम
स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर बनवाया गया था।
बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल में (1750-500 ईसा पूर्व) भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार यहां भी लगभग 8वीं सदी के बाद आदिगुरु शंकराचार्य ने मंदिर बनवा दिया।
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