रविवार, 10 जुलाई को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। इसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी विश्राम से जागते हैं। 10 जुलाई से 5 नवंबर तक विवाह, मुंडन जैसे मांगलिक कर्म करने के लिए शुभ मुहूर्त नहीं रहेंगे। अगर आप ये शुभ कर्म करना चाहते हैं तो 10 जुलाई से पहले कर सकते हैं, इसके बाद करीब चार महीनों तक इंतजार करना पड़ सकता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इन चार माह में सभी प्रकार के शुभ कार्य निषेध रहते हैं। ये वर्षा ऋतु का समय रहता है। इसे चातुर्मास कहते हैं। चातुर्मास में साधु-संत यात्राएं नहीं करते हैं। एक ही जगह रहकर जप-तप, ध्यान, पूजा-पाठ करते है।
चातुर्मास से जुड़ी परंपराएं
पुराने समय में नदी, नाले उफान पर आ जाते थे और कई प्रकार के छोटे-छोटे जीव-जंतुओं का जन्म होता था। इन सब की सुरक्षा की दृष्टि से साधु-संत यात्राएं नहीं करते थे और किसी एक स्थान पर ठहरकर पूजा-पाठ में लगे रहते थे। ताकि इनकी यात्रा से छोटे जीवों की हिंसा न हो।
चातुर्मास में खान-पान में रखें सावधानी
चातुर्मास में बारिश होती रहती है। ऐसी स्थिति में कई नई वनस्पतियां उग आती हैं, कुछ वनस्पतियां नुकसानदायक भी होती हैं। इस समय में खानपान में, साग-सब्जियों के सेवन में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। ऐसी चीजें खाने से बचें जो हमारे पाचन के लिए सही नहीं होती हैं। इन दिनों में धूप भी नहीं निकलती है। धूप न निकलने से हमारा पाचनतंत्र ठीक से काम नहीं कर पाता है। इसलिए खाने में ऐसी चीजें शामिल करें, जिन्हें पचाना आसान होता है।
देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा
इस एकादशी पर भगवान विष्णु की महालक्ष्मी के साथ विशेष पूजा करें। भगवान के लिए व्रत रखें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। जरूरतमंद लोगों को छाता, जूते-चप्पल, वस्त्रों का दान करें।
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