वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन सीता नवमी मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार इस दिन मां सीता प्रकट हुई थीं। इसलिए ये पर्व मनाते हैं। माता सीता धरती मां की पुत्री थीं। इसलिए वनवास के समय सती अनुसुइया ने उन्हें दिव्य आभूषण दिए थे। रावण ने जब माता सीता का हरण किया तो उन्हीं आभूषणों के जरीये श्रीराम को पता चला की सीता को हरण के बाद लंका ले जाया गया है। जानिए उन दिव्य अभूषणों के बारें में...
रामायण में कथा मिलती है कि जब रावण मां सीता का हरण करके उन्हें अपने विमान से लंका ले जा रहा था तब मां सीता ने अपने आभूषण उस विमान में से नीचे फेंके थे। लेकिन बहुत से लोगों को यह बात पता नहीं कि जब वे वनवास में थीं तो उनके पास आभूषण कहां से आए। इसके पीछे भी कथा है कि माता सीता को वनवास की शुरुआत में दिव्य आभूषण और कपड़े प्रदान किए गए थे जो न कभी फट सकते थे न कभी मलिन होते थे।
सती अनुसुइया ने दिए कपड़े और आभूषण
कथा इस तरह है कि वनवास के प्रारंभ में जब राम-लक्ष्मण और माता सीता, ऋषि अत्रि के आश्रम में पहुंचे तो ऋषि ने राम-सीता दोनों का स्वागत सत्कार किया। जब सीता जी सती अनुसुइया से मिलने उनके पास गईं तब सीताजी ने उन्हें प्रणाम किया। फिर सीता जी को अपनी बेटी जैसा प्यार देते हुए उन्होंने उन्हें दिव्य वस्त्र प्रदान किए और वे वस्त्र उन्हें पहनने के लिए कहा। इसके बाद सीता जी को पत्नी धर्म का भी उपदेश दिया था।
अभूषण से ही मिले सीता जी के संकेत
रामचरित मानस के किष्किंधा कांड के एक प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि जब देवी सीता का रावण ने हरण कर लिया तो सीता जी ने अपने आभूषण साड़ी के पल्लू में बांधकर फेंके थे ताकि राह में वे जिसको भी मिलें उनसे सीता जी के बारे में संकेत मिल सकें। यह आभूषण वानर राज सुग्रीव को मिले और उन्होंने आभूषणों को संभालकर रख लिया और फिर जब राम जी से उनका मिलना हुआ तो ये आभूषण श्री राम को दिखाए थे और इसी आधार पर राम जी ने आगे की नीति बनाई थी।
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