माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के उपेंद्र रूप की पूजा होती है। विष्णु जी के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा का भी विधान है। पुराणों का कहना है कि इस व्रत और पूजा से विजय मिलती है। इसलिए ही इसे जया एकादशी कहा गया है। ये व्रत 1 फरवरी, बुधवार को किया जाएगा। इस दिन तन और मन से पूरी तरह सात्विक रहने का जिक्र पुराणों में किया गया है। साथ ही श्रद्धा के हिसाब से जरुरुतमंद लोगों को दान देने का विधान बताया गया है।
एकादशी का महत्व
पद्म पुराण में जिक्र किया गया है कि जया एकादशी व्रत करने से हर तरह के पाप और अधम योनि से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक को जीवन में सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख मिलते हैं। मान्यता है कि जया एकादशी व्रत करने से मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। अत: नियमों का पालन करते हुए यह व्रत करें।
जया एकादशी मुहूर्त
31 जनवरी, मंगलवार को दोपहर करीब 12 बजे से तिथि शुरू होगी। जो 1 फरवरी, बुधवार को दोपहर 2 बजे खत्म होगी। चूंकि उदया तिथि 1 फरवरी को है इसलिए ग्रंथों के मुताबिक इसी दिन व्रत और पूजन किया जाएगा। तिल स्नान और दान भी 1 फरवरी को ही करना शुभ फलदायी रहेगा।
पूजा और व्रत की विधि
सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं। पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे और चुटकी भर तिल डालकर नहाएं। इससे पवित्र तीर्थ स्नान करने जितना पुण्य मिलता है। नहाने के बाद उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद मंदिर या घर में भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने बैठकर व्रत, पूजा और दान का संकल्प लें। पूरे दिन अनाज न खाएं। फलाहार में नमक नहीं खाना चाहिए। इस दिन भूल से भी चावल न खाएं।
व्रत का संकल्प करके चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर विष्णु जी की मूर्ति, माता लक्ष्मी सहित स्थापित करें। विष्णु जी की तस्वीर को चंदन लगाएं और माता लक्ष्मी को रोली या सिंदूर से टीका लगाकर पुष्प एवं भोग अर्पित करें एवं श्रद्धा भाव से पूजन करते हुए फलाहार व्रत करें। ब्राह्मण भोजन करवाएं या जरुरतमंद लोगों को खाना खिलाएं।
व्रत की कथा
एक बार स्वर्ग के नंदन वन में उत्सव में सभी देवगण, सिद्धगण एवं मुनि उपस्थित थे। उसी समय स्वर्ग की नृत्यांगना पुष्यवती और गंधर्व माल्यवान ने एक-दूसरे पर मोहित होकर अमर्यादित व्यवहार किया। इस पर इंद्र को गुस्सा आया और उन्होंने दोनों को स्वर्ग से निकालकर धरती पर रहने का श्राप दिया जिससे दोनों पिशाच बने।
कुछ समय बाद जया एकादशी के दिन अनजाने में दोनों ने व्रत किया। साथ ही दु:ख और भूख के चलते दोनों रातभर जागते भी रहे। इस दौरान दोनों ने भगवान विष्णु को याद भी किया। दोनों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने पुष्यवती और माल्यवान को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया।
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