चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि पर कामदा एकादशी व्रत किया जाता है। ये 1 अप्रैल को है। इस दिन व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु की वासुदेव रुप का पूजन किया जाता है। इस व्रत में भगवान की पूजा और श्रद्धा अनुसार अन्नदान करने के बाद कथा सुननी चाहिए। कामदा एकादशी व्रत की कथा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी।
दशमी से ही शुरू हो जाती है तैयारी
1. कामदा एकादशी व्रत के एक दिन पहले से ही यानी दशमी में जौ, गेहूं और मूंग का एक बार भोजन करके भगवान की पूजा करते हैं।
2. दूसरे दिन यानी एकादशी को सुबह जल्दी नहाने के बाद व्रत और दान का संकल्प लिया जाता है।
3. पूजा के बाद कथा सुनकर श्रद्धा अनुसार दान करते हैं। व्रत में नमक नहीं खाते हैं।
4. सात्विक दिनचर्या के साथ नियमों का पालन कर व्रत पूरा करते हैं। रात में भजन कीर्तन के साथ जागरण किया जाता है।
पौराणिक कथा
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में पूछा तब श्रीकृष्ण ने बताया कि ये कथा पहले वशिष्ठ मुनि ने राजा दिलीप को सुनाई थी। रत्नपुर नगर में पुण्डरिक नाम का राजा था। उनके राज्य में अप्सराएं और गंधर्व रहते थे। उनमें ललित और ललिता नाम के गंधर्व पति-पत्नी भी थे। दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे।
एक दिन राजा की सभा में नृत्य समारोह में गंधर्व ललित गाते हुए अपनी पत्नी की याद में खो गया। जिससे सुर बिगड़ गया। कर्कोट नाग ने भूल को समझकर राजा को बता दिया। इससे राजा को गुस्सा आया और ललित को श्राप देकर राक्षस बना दिया। पति की इस स्थिति को देखकर ललिता दुखी हुई। वो भी राक्षस योनि में आकर पति की पीड़ा से मुक्ति का रास्ता खोजती रही।
एक दिन श्रृंगी ऋषि को उसने सब बताया। उन्होंने कहा चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत करने से तुम्हारे पति को राक्षसी जीवन से मुक्ति मिल सकती है। ललिता ने वैसा ही किया जैसा ऋषि ने उसे बताया था। ऐसा करने से गंधर्व को राक्षस योनी से मुक्ति मिल गई। इसलिए अनजाने में किए गए अपराध या पापों के फल से मुक्ति के लिए ये व्रत किया जाता है।
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