होली के बाद सातवें और आठवें दिन शीतला माता को पूजने की परंपरा है। इन दिनों को शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी कहा जाता है। वहीं कुछ जगहों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन की जाती है।
शीतला माता की पूजा का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक के साथ ही अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है।
शीतला सप्तमी और अष्टमी
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि देश में कुछ जगह शीतला माता की पूजा चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है। इस बार ये तिथियां 14 और 15 मार्च को रहेंगी।
सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव होते हैं। दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है। निर्णय सिंधु ग्रंथ के मुताबिक इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है। इसलिए सप्तमी की पूजा और व्रत मंगलवार को किया जाना चाहिए। वहीं, शीतलाष्टमी बुधवार को मनाई जाएगी।
केवल इसी व्रत में ठंडा खाने की परंपरा
शीतला माता का ही व्रत ऐसा है जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन करते हैं। इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं।
माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव करना चाहिए है। इसलिए ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा खाने से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती।
बीमारियों से बचने के लिए व्रत
माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा जैसी बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं।
गुजरात में, कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले बसोड़ा जैसा ही अनुष्ठान मनाया जाता है और इसे शीतला सातम के नाम से जाना जाता है। शीतला सातम भी देवी शीतला को समर्पित है और शीतला सप्तमी के दिन ताजा खाना नहीं बनाया जाता है।
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