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रविवार, 31 जनवरी को माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। इसे तिल चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश को तिल से बनी चीजों का भोग लगाते हैं। रविवार को चतुर्थी होने से इस दिन गणेशजी के साथ ही सूर्यदेव की भी विशेष पूजा जरूर करनी चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शास्त्रों में पंचदेव बताए गए हैं। गणेशजी, शिवजी, विष्णुजी, देवी दुर्गा और सूर्यदेव। सूर्य एक मात्र प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले देवता हैं। किसी भी काम की शुरुआत पंचदेवों की पूजा के साथ ही होती है। चतुर्थी पर गणेशजी के लिए व्रत-उपवास करने की परंपरा है। लेकिन, रविवार को ये तिथि होने से इस दिन सूर्य पूजा भी जरूर करनी चाहिए।
तांबे के लोटे में जल भरें, फूल और चावल डालें। इसके बाद ये जल सूर्य को चढ़ाएं। जल चढ़ाते समय सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: का जाप करना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति को या किसी मंदिर में तिल-गुड़ और तांबे के बर्तन का दान करें। इस तरह सूर्य पूजा करने से कुंडली में सूर्य के दोष भी दूर हो सकते हैं।
चतुर्थी पर गणेशजी का अभिषेक करें। वस्त्र चढ़ाएं। हार-फूल से श्रृंगार करें। बूंदी या तिल के लड्डू का भोग लगाएं। दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं। ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
ध्यान रखें गणेशजी की पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि पुराने समय में तुलसी गणेशजी से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन, गणेशजी ने विवाह के लिए मना कर दिया तो तुलसी ने उन्हें दो शादी होने का श्राप दे दिया था। इससे गुस्सा होकर गणेशजी ने तुलसी को एक असुर से विवाह होने का श्राप दे दिया।
गणेशजी के श्राप से तुलसी डर गई, तब उसने क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने तुलसी को वरदान दिया कि असुर से विवाह होने के बाद भी तुम्हारी पूजा विष्णुजी के साथ होगी। लेकिन, मेरी पूजा में तुलसी का उपयोग वर्जित रहेगा।
चतुर्थी पर किसी हाथी को केले या गन्ने जरूर खिलाएं। किसी गौशाला में धन और हरी घास का दान करें। शिव मंदिर में शिवलिंग के पास दीपक जलाएं और ऊँ नम: शिवाय नम: मंत्र का जाप करें।
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