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अधिकतर सुख-शांति पाना चाहते हैं, लेकिन उनका मन लालच में फंसा रहता है। जो लोग अपनी मेहनत से कमाए धन से संतुष्ट नहीं होते हैं और दूसरों की संपत्ति को पाने की कोशिश करते हैं। उनका मन कभी भी शांत नहीं हो सकता है। गीता में इस संबंध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था।
श्रीमद् भगवद् गीता के दूसरे अध्याय के 14वें श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, ‘सुख-दुख तो सर्दी-गर्मी की तरह हैं। इनका आना-जाना सर्दी-गर्मी के आने-जाने जैसा है। सुख का आनंद लें, लेकिन दुख को भी सहन करना सीखना चाहिए। जिसने गलत इच्छाओं और लालच को छोड़ दिया है, सिर्फ उसे सुख-शांति मिल सकती है। कोई भी इंसान इच्छाओं से मुक्त नहीं है, लेकिन गलत इच्छाओं को हम जरूर छोड़ सकते हैं।’
दूसरों की संपत्ति को देखकर मन में उसे पाने की इच्छा होना ही लालच है। ऐसी इच्छा को पूरा करने के लिए लोग गलत काम भी करने लगते हैं। इनकी वजह से मन अशांत हो जाता है। इसीलिए लालच से बचें। सुख हो या दुख, हर परिस्थिति समभाव रहना चाहिए। समभाव यानी सुख में बहुत ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए और दुख में दुखी नहीं होना चाहिए। हर परिस्थिति में धर्म के अनुसार आगे बढ़ते रहना चाहिए।
भगवान का ध्यान करें, लेकिन कर्म भी जरूर करें
गीता के आठवें अध्याय के 7वें श्लोक में श्रीकृष्ण ने कहा है, ‘तुम मेरा ध्यान करो, लेकिन अपना कर्म भी जरूर करो। अपना काम बीच में छोड़कर केवल भगवान का नाम लेते रहने से जीवन सफल नहीं होता है। कर्म किए बिना जीवन सुखी और सफल नहीं हो सकता। सिर्फ कर्म करने से ही हमें वह सिद्धि मिल सकती है, जो संन्यास लेने से भी नहीं मिलती।’
श्रीकृष्ण ने कर्म को ही महत्वपूर्ण माना है। जो लोग कर्म छोड़कर सिर्फ भक्ति करते हैं, उनका जीवन दुखों से घिरा रहता है। शास्त्रों में भी यही बताया गया है कि व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए।
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