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शुक्रवार, 25 दिसंबर को गीता जयंती है। गीता में जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। इन सूत्रों को जीवन में उतारने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सभी भ्रम दूर किए थे और धर्म-कर्म का महत्व समझाया था।
महाभारत युद्ध का पहला दिन था। अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण रथ को युद्ध भूमि के बीच में ले गए थे।
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति।।
(श्रीमद् भगवद् गीता, पहला अध्याय, 25वां श्लोक)
अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के मध्यभाग में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के सामने रथ रोक देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे पार्थ। युद्ध भूमि में एकत्र हुए कौरव पक्ष के योद्धाओं को देखो। गीता के पहले अध्याय में श्रीकृष्ण का मात्र एक यही श्लोक है। जिसमें श्रीकृष्ण बोले हैं। श्रीकृष्ण के इन शब्दों को सुनने के बाद अर्जुन ने जैसे ही कौरव पक्ष देखा, उनके हृदय में मोह, चिंता, दुख, संन्यास जैसे विचार दौड़ने लगे थे।
कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।।
(श्रीमद् भगवद् गीता, पहला अध्याय, 28वां श्लोक)
श्रीकृष्ण के कहने के बाद जैसे अर्जुन ने कौरव पक्ष में पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, दुर्योधन आदि योद्धाओं को देखा तो वह परेशान हो गए। अर्जुन इस श्लोक में श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मेरे सामने खड़े मेरे कुटुंब के लोगों को देखकर मेरे अंग कांप रहे हैं। मेरे हाथ से गांडीव छुट रहा है। मेरा मन अस्थिर हो रहा है।
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।।
(श्रीमद् भगवद् गीता, पहला अध्याय, 32वां श्लोक)
इस श्लोक में अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मैं युद्ध नहीं चाहता, मुझे कोई राज्य भी नहीं चाहिए, ना ही सुख चाहता हूं, ये लेकर मुझे क्या लाभ मिलेगा।
अर्जुन ने कहा कि मैं मेरे कुटुंब के लोगों के मारकर त्रिलोक का राज्य भी पाना नहीं चाहता हूं। मैं युद्ध नहीं करना चाहता।
इस तरह अर्जुन ने युद्ध न करने के अपने तर्क रखे। अर्जुन के प्रश्नों के जवाब में श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश सुनाया और कर्म, कर्तव्य का महत्व समझाया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि कर्म करो, लेकिन फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
गीता का सार यही है कि हमें हर हाल में अपने धर्म के अनुसार फल की इच्छा किए बिना कर्म करना चाहिए। सभी कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा करने पर ही हमारा जीवन सफल होता है।
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