गुप्त नवरात्रि 30 जून से शुरू हो गई है। जो कि 8 जुलाई तक रहेगी। इस बार तिथियां कम नहीं होने से पूरे नौ दिनों के अखंड नवरात्र होंगे। जो कि शुभ रहेंगे। ग्रंथों में बताया गया है कि आषाढ़ मास के इन्हीं दिनों में देवी पार्वती ने शिवजी के सामने अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन भी किया था। इसलिए इन दिनों में देवी के दस रूपों की पूजा करने की परंपरा बनी है। कम ही लोगों को इसकी जानकारी होने के कारण इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं। इनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती हैं।
विशेष इच्छा पूर्ति और सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्र
महाकाल संहिता और तमाम शाक्त ग्रंथों में इन चारों नवरात्रों का महत्व बताया गया है। इनमें विशेष तरह की इच्छा की पूर्ति तथा सिद्धि प्राप्त करने के लिए पूजा और अनुष्ठान किया जाता है। इस बार माघ महीने की गुप्त नवरात्रि 25 जनवरी से 3 फरवरी तक रहेगी। अश्विन और चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि में जहां भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना होती है, वहीं, गुप्त नवरात्र में देवी के दश महाविद्या स्वरूप की आराधना भी की जाती है।
गोपनीय रखा जाता है साधना को
गुप्त नवरात्र की आराधना का विशेष महत्व है और साधकों के लिए यह विशेष फलदायक है। सामान्य नवरात्रि में आमतौर पर सात्विक और तांत्रिक दोनों तरह की पूजा की जाती है, वहीं गुप्त नवरात्रि में ज्यादातर तांत्रिक पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि में आमतौर पर ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं किया जाता, अपनी साधना को गोपनीय रखा जाता है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होगी, सफलता उतनी ही ज्यादा मिलेगी।
गुप्त नवरात्रि में मानसिक पूजा का महत्व
चैत्र और शारदीय नवरात्र की तुलना में गुप्त नवरात्र में देवी की साधाना ज्यादा कठिन होती है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इन नवरात्र में मानसिक पूजा का महत्व है। वाचन भी गुप्त होता है यानी मंत्र भी मन में ही पढ़े जाते हैं, लेकिन इन दिनों में सतर्कता भी जरूरी है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि गुप्त नवरात्र केवल तांत्रिक विद्या के लिए ही होते हैं। इनको कोई भी कर सकता है लेकिन थोड़ा ध्यान रखना आवश्यक है।
देवी सती ने किया था 10 महाविद्याओं का प्रदर्शन
भगवान शंकर से सती ने जिद की कि वह अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां अवश्य जाएंगी। प्रजापति ने यज्ञ में न सती को बुलाया और न भगवान शंकर को। शंकर जी ने कहा कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाते। लेकिन सती जिद पर अड़ गईं। सती ने उस समय अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन किया।
भगवान शिव ने सती से पूछा की ये कौन हैं तब सती ने बताया कि सती ने बताया,ये मेरे दस रूप हैं। सामने काली हैं। नीले रंग की देवी तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं। मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देती हूं। इन्हीं दस महाविद्याओं ने चंड-मुंड और शुम्भ-निशुम्भ वध के समय देवी के साथ असुरों से युद्ध किया।
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