बुधवार, 16 नवंबर को शिव जी के अवतार काल भैरव का प्रकट उत्सव है। भगवान शिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव के रूप में अवतार लिया था। काल भैरव का श्रृंगार खासतौर पर सिंदूर और चमेली का तेल से किया जाता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए काल भैरव अष्टमी पर पूजा-पाठ कैसे कर सकते हैं...
सूर्यास्त के बाद करनी चाहिए भैरव पूजा
शिव जी का ये अवतार प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए भैरव देव की पूजा सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए। शाम को स्नान के बाद भैरव मंदिर में भगवान का श्रृंगार सिंदूर, सुगंधित तेल से करना चाहिए। लाल चंदन, चावल, गुलाब के फूल, जनेऊ, नारियल चढ़ाएं। तिल-गुड़ या गुड़-चने या इमरती का भोग लगाएं।
पूजा में जलाएं सरसों के तेल का दीपक
भैरव पूजा में धूप-बत्ती के साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाकर भैरव मंत्र का जप करना चाहिए। ऊँ भैरवाय नम: मंत्र का जप करते हुए चंदन, चावल, फूल, सुपारी, दक्षिणा, भोग लगाना चाहिए।
शिव-पार्वती की भी करें पूजा
भैरव अष्टमी पर शिव जी और पार्वती जी की भी विशेष पूजा जरूर करें। शिव जी और देवी पार्वती का अभिषेक करें। ध्यान रखें पूजा की शुरुआत गणेश पूजन के साथ करनी चाहिए। शिव-पार्वती को बिल्व पत्र, फूल चढ़ाएं। चंदन से तिलक करें। देवी मां को चुनरी और शिव जी को जनेऊ चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
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