किसी भी काम की शुरुआत में अगर हम कन्फ्यूज हैं, भ्रमित हैं तो उस काम में सफल होना बहुत मुश्किल हो जाता है। काम की शुरुआत में ही हमें हमारे सारे भ्रमों को दूर कर लेना चाहिए। अगर भ्रम में उलझे रहेंगे तो न तो सफलता मिलेगी और न ही मन शांत होगा।
महाभारत में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होने वाला था। कुरुक्षेत्र में दोनों पक्षों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। कौरवों की सेना पांडवों से बहुत ज्यादा थी। श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे।
युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन ने श्रीकृष्ण से रथ को कौरव सेना के पास ले जाने के लिए कहा। अर्जुन ने कहा, 'युद्ध शुरू हो उससे पहले मैं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य और अन्य लोगों को देखना चाहता हूं।'
अर्जुन की बात मानकर श्रीकृष्ण रथ को कौरव सेना की ओर ले गए। अर्जुन ने जब कौरव पक्ष में अपने कुटुंब के लोगों को देखा तो वह निराश हो गए। अर्जुन ने अपने धनुष-बाण रथ में नीचे रख दिए और वे श्रीकृष्ण से बोले, 'मैं ये युद्ध नहीं करना चाहता। मैं मेरे कुटुंब के लोगों पर कैसे प्रहार कर सकता हूं। मुझमें शक्ति ही नहीं है कि मैं युद्ध कर सकूं। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं ये युद्ध करूं या नहीं।'
ये बात सुनते ही श्रीकृष्ण समझ गए कि अर्जुन भ्रम में फंस गए हैं। भगवान ने अर्जुन से कहा, 'जीवन में सारी कमजोरियां चल सकती हैं, लेकिन भ्रम नहीं चल सकता है। भ्रम की वजह से न तो सफलता मिलती है और न ही शांति मिलती है। तुम्हें ये युद्ध धर्म की रक्षा के लिए करना है। तुम्हें सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए।'
इसके बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया और सारे भ्रम दूर किए। तब अर्जुन युद्ध करने के लिए तैयार हो गए।
जब अर्जुन का भ्रम दूर हुआ तो उन्होंने पूरी शक्ति के साथ युद्ध किया और पांडवों को जीत भी दिलाई। ठीक इसी तरह हमें भी भ्रम से बचना चाहिए। काम जो भी हो, हमें भ्रम में नहीं फंसना चाहिए। भ्रम दूर करें और फिर काम की शुरुआत करेंगे तो सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
कन्फ्यूजन दूर करने के लिए हमें अनुभवी लोगों से, गुरु से, घर के बड़ों से बात करनी चाहिए। विद्वान लोगों का मार्गदर्शन लेकर काम करेंगे तो सारी समस्याएं दूर हो सकती हैं।
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