महाभारत में सभी पांडव अपने बड़े भाई युधिष्ठिर का बहुत सम्मान करते थे। युधिष्ठिर की हर एक आज्ञा का पालन करते थे, लेकिन एक बार अर्जुन युधिष्ठिर पर इतना गुस्सा हो गए थे कि वे उन्हें मारने के लिए तैयार हो गए थे। उस समय श्रीकृष्ण ने दोनों भाइयों का विवाद खत्म किया था।
महाभारत चल रहा था। 17वां दिन था। उस दिन युधिष्ठिर के सामने कर्ण आ गया। दोनों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें युधिष्ठिर हार गए और किसी तरह अपने प्राण बचाकर अपने शिविर में लौट आए।
जब ये बात अर्जुन को मालूम हुई तो वे तुरंत अपने भाई के शिविर में पहुंच गए। युधिष्ठिर हार से दुखी थे, उन्होंने अर्जुन को देखा और गुस्से में कह दिया कि तुम और तुम्हारे गांडीव पर धिक्कार है, तुम्हारे होते हुए भी मैं कर्ण से हार गया।
अपने धनुष के लिए ऐसी बात सुनते ही अर्जुन बहुत गुस्सा हो गए और उन्होंने तलवार उठा ली और युधिष्ठिर को मारने के लिए तैयार हो गए। उस समय श्रीकृष्ण वहां पहुंच गए और उन्होंने अर्जुन को रोक दिया और पूछा कि ये क्या कर रहे हो?
अर्जुन ने कहा कि मैंने संकल्प ले रखा है कि जो व्यक्ति मेरे गांडीव का अपमान करेगा, मैं उसका वध कर दूंगा। आज भइया ने मेरे गांडीव का अपमान कर दिया है।
श्रीकृष्ण ने सोचा कि अगर भाई-भाई के विवाद के बारे में बाहर सेना को मालूम हुआ तो सभी का मनोबल टूट जाएगा और फिर युद्ध जीतना मुश्किल हो जाएगा।
बहुत सोचने के बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अपने भाई का अपमान कर दो, शास्त्र कहते हैं कि बड़े भाई को तू कहकर बोल जाए और उनका अपमान किया जाए तो ये उनकी हत्या करने जैसा ही है। तुम भी बड़े भाई को तू करके बोल दो।
श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने युधिष्ठिर को तू कहते हुए अपमान कर दिया। कुछ देर बाद अर्जुन का मन शांत हुआ और भाइयों का झगड़ा श्रीकृष्ण की वजह से शिविर में ही सुलझ गया।
श्रीकृष्ण का संदेश
श्रीकृष्ण ने यहां संदेश दिया है कि परिवार में मतभेद होते रहते हैं, लेकिन मतभेद घर में ही सुलझा लेने चाहिए। घर से बाहर विवाद आएंगे तो पूरे परिवार की प्रतिष्ठा खत्म हो जाएगी।
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