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द्रुपद ने किया था द्रोणाचार्य का अपमान:सुखी रहना चाहते हैं तो दो बातें ध्यान रखें; दोस्त को अपमानित न करें और अपनी योग्यता का सही इस्तेमाल करें

एक महीने पहले
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महाभारत में कौरव और पांडव छोटे थे, उस समय की घटना है। एक दिन सभी राजकुमार खेल रहे थे और उनकी कोई चीज कुएं में गिर गई। राजकुमार अपनी चीज को कुएं से निकालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। तभी वहां द्रोणाचार्य पहुंचे। द्रोणाचार्य ने अपनी धनुर्विद्या का उपयोग करते हुए कुएं से उनकी चीज निकाल दी।

राजकुमार द्रोणाचार्य की धनुर्विद्या से बहुत प्रभावित हुए। सभी ने द्रोणाचार्य के बारे में भीष्म पितामह को बताया। भीष्म तुरंत ही द्रोणाचार्य के पास पहुंचे।

द्रोणाचार्य ने भीष्म से कहा कि मैं भारद्वाज ऋषि का पुत्र हूं। मैंने और राजा द्रुपद ने अग्निवेश ऋषि से शिक्षा ली है। द्रुपद और मैं अच्छे मित्र बन गए थे। जब पढ़ाई पूरी हुई तो अपने राज्य लौटते समय द्रुपद ने मुझसे कहा था कि तुम मेरे मित्र हो और जब मैं राजा बनूंगा, मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगा।

द्रुपद अपने राज्य चला गया और मैं अपने घर लौट आया। विवाह के बाद मेरा एक पुत्र हुआ अश्वत्थामा। मैं बहुत गरीब था, मेरा बेटा मुझसे दूध मांगता था, लेकिन मेरे पास उसे देने के लिए दूध नहीं था। एक दिन कुछ बच्चों ने अश्वत्थामा को पानी में आटा घोलकर दे दिया। मेरे बेटे ने आटे का पानी दूध समझकर खुशी-खुशी पी लिया। ये देखकर मुझे बहुत दुख हुआ।

दुखी होकर मैं अपने मित्र द्रुपद से मदद मांगने के लिए पहुंचा। द्रुपद ने मुझे पहचानने से ही मना कर दिया और भरे दरबार में मेरा अपमान किया। उस दिन मैंने संकल्प लिया था कि मैं अपने अपमान का बदला लूंगा। अब मैं चाहता हूं कि मैं ऐसे शिष्य तैयार करूं जो द्रुपद को पराजित करें और मेरे सामने बंदी बनाकर ले आए।

भीष्म ने द्रोणाचार्य की बातें सुनने के बाद कहा कि मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूं। आप योग्य गुरु हैं, इसलिए अब से आप ही कौरव और पांडव राजकुमारों के गुरु होंगे।

द्रोणाचार्य ने कौरव-पांडवों को इतना योग्य बना दिया कि उन्होंने द्रुपद को युद्ध में पराजित कर दिया और बंदी बनाकर द्रोणाचार्य के सामने ले आए थे।

प्रसंग की सीख

इस किस्से में हमें दो संदेश मिल रहे हैं। पहला संदेश ये है कि हमें कभी भी अपने मित्र का अपमान नहीं करना चाहिए, वर्ना बाद में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दूसरा संदेश ये है कि हमें अपनी योग्यता का उपयोग सही ढंग से करना चाहिए। इस किस्से में द्रोणाचार्य ने अपनी योग्यता का इस्तेमाल कौरव-पांडवों को अच्छा योद्धा बनाने में किया था। द्रोणाचार्य की वजह से ही सभी राजकुमार श्रेष्ठ योद्धा बने। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाया था।

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