काम पूरा होगा या नहीं, जीवन में सुख मिलेगा या नहीं, ये हमारे द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करता है। अगर हम निर्णय लेते समय भविष्य में मिलने वाले परिणामों पर भी विचार करेंगे तो गलतियां होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ये बात समझाई थी।
महाभारत के समय एक खांडव वन था। इस वन में अर्जुन की वजह से आग लग गई थी। वन में मयासुर नाम का एक राक्षस रहता था। आग की वजह से मयासुर के प्राण संकट में पड़ गए, तब अर्जुन ने उसके प्राण बचा लिए थे।
अर्जुन का उपकार मानकर मयासुर ने कहा आपने इस आग से मुझे बचाया है, इस उपकार के बदले मैं आपके लिए कुछ करना चाहता हूं। आप बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?
मयासुर ने आगे कहा कि मैं दानवों का शिल्पी हूं। मैं भी विश्वकर्मा की तरह ही निर्माण करता हूं। शिल्प विद्या में पारंगत हूं। आप मुझे कोई काम बताइए।
अर्जुन ने कहा कि इस मुझे आपकी कोई जरूरत नहीं है, लेकिन श्रीकृष्ण चाहें तो वे आपको सेवा का अवसर दे सकते हैं। एक बार आप उनसे बात करें।
मयासुर श्रीकृष्ण के पास पहुंचा। उस समय अर्जुन ने सोचा था कि श्रीकृष्ण भी मयासुर को कोई काम नहीं बताएंगे, लेकिन श्रीकृष्ण कुछ सोचकर मयासुर से कहा कि तुम पांडवों के लिए के सुंदर और विशाल महल बनाओ। महल ऐसा हो, जिसे देखकर हर कोई हैरान रह जाए।
ये बात सुनकर अर्जुन हैरानी हुई, लेकिन मयासुर ने युधिष्ठिर से बात करके एक विशाल और बहुत ही सुंदर महल बना दिया। तब अर्जुन को समझ आया कि श्रीकृष्ण जो भी निर्णय लेते हैं, वह भविष्य को ध्यान में रखकर ही लेते हैं।
श्रीकृष्ण की सीख
इस प्रसंग में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सीख दी है कि हम जो भी निर्णय लेते हैं, उसके लिए भविष्य का ध्यान जरूर करना चाहिए। अगर हम भविष्य में होने वाले फायदे-नुकसान का आंकलन करके कोई निर्णय लेंगे तो गलतियां होने की संभावनाएं काफी कम रहेंगी। ऐसे निर्णय से हमारे जीवन में सुख-शांति आती है।
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