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अगर कोई व्यक्ति गलत तरीके से कमाए गए धन से मिला भोजन करता है तो उसका दिमाग बुरे लोगों के सामने कुछ सोच नहीं पाता है। ऐसे लोग बुरे कामों को रोक भी नहीं पाते हैं। महाभारत में ये बात भीष्म ने द्रौपदी को समझाई थी।
महाभारत में कौरव और पांडवों का युद्ध अंतिम चरण में था। कौरव सेना के लगभग सभी महारथी पांडवों के हाथों पराजित हो चुके थे। भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे थे। उस समय एक दिन युद्ध विराम के बाद सभी पांडव और द्रौपदी भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे।
भीष्म पांडवों को ज्ञान की बातें बता रहे थे। तब द्रौपदी ने कहा, 'आज आप ज्ञान की बातें कर रहे हैं, लेकिन जिस दिन भरी सभा में मेरा चीर हरण हो रहा था, आप भी वहां थे, तब आपका ये ज्ञान कहां गया था, आप उस समय चुप क्यों थे, मेरी मदद क्यों नहीं की?
पितामह ने कहा, 'मैं जानता था, एक दिन मुझे तुम्हारे इन प्रश्नों के उत्तर देना पड़ेंगे। उस समय मैं दुर्योधन का दिया हुआ अन्न खा रहा था। वह अन्न गलत कामों से कमाया हुआ था। ऐसा अन्न खाने से मेरा दिमाग दुर्योधन के सामने कुछ सोच नहीं पा गया था। मैं ये सब रोकना चाहता था, लेकिन दुर्योधन के अन्न ने मुझे रोक दिया।'
द्रौपदी ने फिर पूछा, 'तो फिर आज आप ज्ञान की बातें कैसे कर रहे हैं?'
भीष्म बोलें, 'अर्जुन के बाणों से मेरे शरीर से सारा रक्त बह गया। ये रक्त दुर्योधन के दिए अन्न से ही बना था। अब मेरे शरीर में रक्त नहीं है, मैं दुर्योधन के अन्न के प्रभाव से आजाद हो गया हूं, इसीलिए आज ज्ञान की ये बातें कर पा रहा हूं।'
सीख
इस कथा की सीख यही है कि हमें हर हाल में गलत कामों से बचना चाहिए और जो खाना गलत कमाई से प्राप्त हुआ है, उसे ग्रहण करने से बचें। वरना हमारा दिमाग गलत लोगों के सामने सोच-समझने की शक्ति खो देता है।
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