महाभारत में राजा द्रुपद और द्रोणाचार्य से जुड़ा किस्सा है। द्रुपद ने द्रोणाचार्य का अपमान किया था। इसका बदला लेने के लिए द्रोणाचार्य ने कौरव और पांडवों के द्रुपद से युद्ध करने भेजा था। कौरव-पांडवों ने द्रुपद को पराजित कर दिया। इसके बाद द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य खुद रख लिया और आधा उसे लौटा लिया।
द्रुपद द्रोणाचार्य से अपमानित होकर बहुत दुखी था। अब वह ऐसा पुत्र चाहता था जो द्रोणाचार्य से उसके अपमान का बदला ले सके। इसके लिए वह ऐसे ब्राह्मण की तलाश कर रहा था जो उसके लिए यज्ञ करें। यज्ञ के शुभ फल से उसे ऐसा पुत्र प्राप्त हो जो द्रोणाचार्य को मार सके।
एक दिन द्रुपद को याज और उपयाज नाम के दो ब्राह्मण मिले। द्रुपद ने पहले उपयाज से कहा कि मैं एक ऐसा पुत्र चाहता हूं जो द्रोणाचार्य का वध कर सके। आप मेरे लिए यज्ञ करें, ताकि मुझे ऐसा पुत्र मिल सके।
उपयाज ने इस काम के लिए मना कर दिया, क्योंकि वह गलत काम नहीं करता था, लेकिन उसने कहा कि ये काम मेरा भाई याज कर सकता है। द्रुपद याज के पास पहुंचा और उसे अपनी इच्छा बता दी। याज ने धन के लालच में द्रुपद के लिए यज्ञ शुरू कर दिया।
याज के यज्ञ के प्रभाव से द्रुपद के यहां धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ।
द्रुपद ने द्रोणाचार्य को नुकसान पहुंचाने की नीयत से यज्ञ करवाया और वह पुत्र संतान भी इसीलिए पाना चाहता था। इस वजह से द्रुपद का जीवन हमेशा अशांत ही रहा। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य में द्रुपद का वध किया था। बाद में धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का वध किया था।
जीवन प्रबंधन
इस प्रसंग की सीख यह है कि बदले की भावना से जो काम किया जाता है, उसकी वजह से जीवन हमेशा अशांत रहता है। इसलिए किसी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से कोई काम नहीं करना चाहिए।
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