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महाभारत में जब पांडवों का वनवास चल रहा था, तब पांचों भाई और द्रौपदी जंगलों में भटक रहे थे। इस दौरान वे कैलाश पर्वत के जंगलों में पहुंच गए। उस समय यक्षों के राजा कुबेर का निवास भी कैलाश पर्वत पर ही था। कुबेर के नगर में एक सरोवर था, जिसमें सुगंधित फूल थे। द्रौपदी को उन फूलों की महक आई तो उसने भीम से कहा कि उसे ये फूल चाहिए। भीम द्रौपदी के लिए फूल लाने चल दिए।
रास्ते में भीम ने देखा एक वानर रास्ते पर पूंछ फैलाकर सो रहा है। किसी जीव को लांघकर आगे बढ़ जाना मर्यादा के विरुद्ध था। इसलिए, भीम ने वानर से कहा आप अपनी पूंछ हटा लो। मुझे यहां से जाना है। बंदर ने नहीं सुना, भीम को क्रोध आ गया। उसने कहा कि तुम जानते हो मैं महाबली भीम हूं। वानर ने कहा कि इतने शक्तिशाली हो तो तुम खुद ही मेरी पूंछ रास्ते से हटा दो और चले जाओ।
भीम पूंछ हटाने के लिए कोशिश करने लगा, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। तब भीम ने हार मान ली। वह वानर से प्रार्थना करने लगा। तब वानर ने अपना असली रूप दिखाया। वे स्वयं पवनपुत्र हनुमानजी थे। उन्होंने भीम को समझाया कि कभी किसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए। कभी भी अपनी शक्ति पर इस तरह घंमड नहीं करना चाहिए। ताकत और विनम्रता ऐसे गुण हैं जो विपरीत स्वभाव के होते हैं, लेकिन अगर ये एक ही स्थान पर आ जाएं तो व्यक्ति महान हो जाता है।
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