शनिवार की रात सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन पर मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस बार पंचांग भेद की वजह से कुछ क्षेत्रों में 14 को और कुछ क्षेत्रों में 15 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी। संक्रांति के समय ही उत्तरायण भी होता है। उत्तरायण यानी सूर्य की स्थिति में बदलाव होना। अब सूर्य की रोशनी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर से आने लगेगी। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं के दिन की शुरुआत माना जाता है। इस दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक मकर संक्रांति पर दान-पुण्य और पूजा-पाठ करने के साथ ही ग्रंथों का पाठ भी करना चाहिए। पूरे ग्रंथ का पाठ नहीं कर सकते हैं तो अलग-अलग कथाओं का पाठ भी किया जा सकता है। उत्तरायण के अवसर पर जानिए भीष्म पितामह से जुड़ी एक कथा, जिसका संदेश ये है कि जब हम गलत लोगों की बीच रहते हैं तो हम भी गलत कामों में फंस जाते हैं, इसलिए गलत संगत से बचना चाहिए...
भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे और महाभारत युद्ध अंतिम चरण में पहुंच चुका था। एक दिन युद्ध खत्म होने के बाद सभी पांडव और द्रौपदी भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे।
जब पांडव भीष्म के पास पहुंचे तो भीष्म उन्हें धर्म-अधर्म और राजनीति कि बातें बता रहे थे। उस समय द्रौपदी ने भीष्म से पूछा कि आज आप ज्ञान, धर्म की इतनी बातें कर रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मेरा चीरहरण हो रहा था, तब आप चुप क्यों थे? आप को धर्म जानते हैं, फिर मेरी मदद क्यों नहीं की?
भीष्म पितामह ने द्रौपदी से कहा कि मैं जानता था, एक दिन मुझे इस सवाल का जवाब जरूर देना होगा, जिस दिन तुम्हारा चीरहरण अधर्म हो रहा था, उस समय मैं दुर्योधन का दिया अन्न खा रहा था, मैं गलत लोगों की संगत में फंसा था, दुर्योधन का दिया अन्न पाप कर्मों से कमाया हुआ था। ऐसा दूषित अन्न और गलत संगत की वजह से मैं दुर्योधन के अधीन हो गया था। इस वजह से ही मैं उस दिन तुम्हारी मदद नहीं कर सका।
भीष्म ने आगे कहा कि अब अर्जुन के बाणों की वजह से मेरे शरीर से सारा रक्त बह गया है, अब मेरे शरीर में दुर्योधन के अन्न का प्रभाव नहीं है, इस वजह से मैं धर्म की बातें कर पा रहा हूं।
प्रसंग की सीख
इस प्रसंग में भीष्म पितामह ने संदेश दिया है कि हमें गलत संगत से बचना चाहिए और ऐसा अन्न भी न खाएं जो कामों से कमाया हुआ है, वर्ना हमारी सोच भी दूषित हो सकती है।
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