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जो लोग सच्चा प्रेम करते हैं, वे अपने प्रेमी से लेन-देन का किसी तरह का हिसाब-किताब नहीं करना चाहिए। प्रेम में निजी स्वार्थ का स्थान नहीं होता है। इसी तरह भक्ति करते समय भी भगवान के सामने शर्त नहीं रखनी चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है।
कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत अपने शिष्यों के साथ गांव-गांव में घूमकर उपदेश देते थे और लोगों को बुरे कर्मों से बचने के लिए प्रेरित करते थे। इस दौरान वे एक गांव में पहुंचे। उस गांव में एक ग्वालिन दूध-घी बेचती थी। वह सभी लोगों को दूध-घी बराबर तोल कर देती थी, लेकिन गांव के ही एक लड़के को दूध-घी बिना तोले ही दे देती थी।
संत के भक्त ने उनकी कुटिया उसी ग्वालिन के घर के सामने बनवा दी थी। संत ने देखा कि ग्वालिन सभी को दूध-घी बराबर तोलकर देती है, लेकिन एक लड़के को बिना हिसाब-किताब के ही दूध-घी दे देती है।
संत को ये बात समझ नहीं आ रही थी कि वह लड़की ऐसा क्यों करती है? संत ने गांव के लोगों से ये बात पूछी तो मालूम हुआ कि वह ग्वालिन उस लड़के से प्रेम करती है और इसी वजह से वह उसे बिना नापे दूध देती है। ग्वालिन उस लड़के से लेन-देन का हिसाब भी नहीं रखती है।
संत ने अपने शिष्यों से कहा कि ये साधारण सी ग्वालिन जिसे प्रेम करती है, उससे लेन-देन का हिसाब नहीं रखती है, हम भी अपने भगवान से प्रेम करते हैं तो भक्ति में किसी तरह का हिसाब-किताब नहीं रखना चाहिए। मंत्र जाप की संख्या का हिसाब रखने की भी जरूरत नहीं है। भक्ति में भगवान के सामने किसी तरह की शर्त भी नहीं रखनी चाहिए। जिस तरह प्रेम में किसी तरह के स्वार्थ की जगह नहीं होती है, ठीक उसी तरह भक्ति में भी किसी तरह का स्वार्थ नहीं होना चाहिए।
कथा की सीख
इस कथा की सीख यह है कि जब लोग प्रेम में किसी भी प्रकार के लेन-देन का हिसाब नहीं रखते हैं तो हमें भी भक्ति भी बिना किसी शर्त के करना चाहिए। भगवान के काम के लिए दिए गए दान का हिसाब नहीं रखना चाहिए।
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