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एक संत हमेशा घूमते रहते और लोगों को धर्म-कर्म के लिए प्रेरित करते थे। घूमते-घूमते वे एक ऐसे राज्य में पहुंच गए, जहां के राजा बहुत दानी और धर्म-कर्म करने वाले थे। लेकिन, उन्हें अपनी शक्ति पर और धन पर बहुत घमंड था।
संत उस राजा के राज्य में ठहर गए। कुछ ही दिनों में राज्य के काफी लोग संत के पास पहुंचने लगे थे। संत अपने अनुभव से लोगों की समस्याओं का हल बता देते थे। उनके उपदेश सुनने के लिए लोगों की भीड़ लगने लगी थी। जब ये बात राजा को मालूम हुई तो उसने संत को अपने महल में भोजन के आमंत्रित किया।
संत राजा के महल में पहुंच गए। राजा ने संत का बहुत अच्छी तरह सत्कार किया। खुद भोजन परोसा। खाने के बाद संत जाने लगे तो राजा ने कहा कि गुरुदेव मैं आपको कुछ देना चाहता हूं। आप अपनी इच्छा के अनुसार मुझसे कुछ भी मांग सकते हैं। मैं आपकी हर इच्छा पूरी कर सकता हूं। मैं राजा हूं और मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
संत समझ गए कि राजा को अपने धन पर और शक्ति पर बहुत घमंड है। उन्होंने कहा कि राजन् आप अपनी सबसे प्रिय चीज मुझे दान में दे दीजिए।
राजा को समझ नहीं आया कि वह संत को क्या चीज दान में दे। उसने सोने के सिक्कों से संत का कमंडल भर दिया। संत ने कहा कि राजन् मुझे धन नहीं चाहिए। मुझे पैसों का लालच नहीं है। आप मुझे अपना अहंकार दे दीजिए। घमंड एक ऐसी बुराई है, जिससे हमारे सभी गुणों का महत्व खत्म हो जाता है। इस बुराई की वजह से आपके भी सारे गुण महत्वहीन हो जाते हैं। राजा को घमंड से बचना चाहिए। आपके पास जो भी धन-संपत्ति है, उस पर आपकी प्रजा का भी हक है। क्योंकि, राजा के लिए उसकी प्रजा का सुख ही सर्वोपरि होता है। अपनी प्रजा की सेवा निस्वार्थ भाव से करें, तभी राजा का धर्म पूरा होगा। राजा को संत की बात समझ और उसने घमंड छोड़ने का संकल्प लिया।
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