स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस अपने उपदेश, सीधे-साधे स्वभाव और रहन-सहन की वजह से काफी प्रसिद्ध थे। रोज ही उनसे मिलने कई लोग आते थे। प्रसिद्ध होने के बाद भी उनका स्वभाव नहीं बदला और वे हमेशा आनंद में रहा करते थे।
एक दिन वे अपने दैनिक काम कर रहे थे। कुछ लोग उनके सामने बैठे हुए थे और परमहंस का काम खत्म होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि उन्हें अच्छी बातें सुनने को मिल सके। उस समय वहां एक बड़े संत पहुंच गए। संत का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सभी उनका सम्मान करते थे। वे परमहंस जी के सामने खड़े हो गए, लेकिन परमहंस जी अपने काम में व्यस्त थे, उन्होंने संत की ओर ध्यान ही नहीं दिया।
ये देखकर संत को गुस्सा आ गया, उसने कहा कि क्या तुम मुझे पहचानते नहीं हो? मैं पानी पर चलकर आया हूं। मेरे पास चमत्कारी सिद्धि है, जिससे मैं बिना डूबे पानी पर धरती की तरह चल सकता हूं। मुझे ये चमत्कार करते हुए लोगों ने देखा है। तुम मुझे ठीक से देख भी नहीं रहे हो और न ही बात कर रहे हो।
रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि भैया, आप बहुत बड़े व्यक्ति हैं और आपके पास सिद्धि भी है, लेकिन एक बात मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि इतनी बड़ी सिद्धि है और इतना छोटा काम किया है। नदी पार करनी थी तो नाव वाले को दो पैसे दे देते, वह आपको आराम से नदी पार करवा देता। जो काम दो पैसे में हो सकता है, उसके लिए आपने इतनी तपस्या की है। आप इस सिद्धि का प्रदर्शन भी कर रहे हैं। एक संत को ये बात शोभा नहीं देती है। संत को घमंड करना ही नहीं चाहिए।
ये बातें सुनकर वह संत शर्मिंदा हो गया।
परमहंस जी की सीख
इस किस्से में रामकृष्ण परमहंस जी ने संदेश दिया है कि अगर हमारे पास कोई खास योग्यता है, कोई सिद्धि है तो हमें उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। जो लोग अपनी शक्तियों का घमंड करते हैं और दूसरों को छोटा समझते हैं, उन्हें कहीं भी मान-सम्मान नहीं मिल पाता है। हमें अपनी शक्तियों का उपयोग सही समय पर और सही जगह करना चाहिए।
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