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हिंदू कैलेंडर के दसवें महीने पौष मास की शुरूआत 31 दिसंबर से हो चुकी है, जो 28 जनवरी तक रहेगा। इस महीने से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि पौष महीने में भगवान सूर्य की पूजा करनी चाहिए। वैसे तो सूर्यदेव की उपासना रोज करनी चाहिए, लेकिन इस महीने में सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसा करने से हर तरह के पाप खत्म होते हैं। बीमारियां भी खत्म होती हैं और उम्र बढ़ती है। पौष महीने के दौरान दिन छोटे होते हैं और रातें बड़ी। इसलिए इस समय सूरज की किरणें शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद बनाए रखने के लिए जरूरी होती हैं। यही वजह है कि पौष महीने के दौरान भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा बनाई गई है।
पौष महीने का धार्मिक और व्यवहारिक महत्व
वेद में सूर्य को संसार की आत्मा कहा गया है। इसलिए इस महीने में भगवान सूर्य की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। हालांकि पौष महीने में शादी-विवाह आदि लौकिक उत्सव वर्जित माने गए हैं। इसलिए इन दिनों में सुबह जल्दी जागना चाहिए और सूर्य पूजा करनी चाहिए, सुबह-सुबह धूप में बैठना चाहिए। ऐसा करने से हमें धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। पौष महीने में भगवान सूर्य की पूजा के साथ ही अन्न और अन्य चीजों का दान करना चाहिए। ऐसा करने से लंबी उम्र मिलती है।
पौष माह का वैज्ञानिक और व्यवहारिक महत्व
इस महीने में सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान और उदय होते सूर्य की पूजा की परंपरा है। विज्ञान में भी कहा गया है कि सुबह 7 से 10 के बीच सूरज की रोशनी में खड़े होने से रोग खत्म होते हैं।
पौष महीने में शीत ऋतु चरम पर होती है। ठंड ज्यादा होने के कारण स्किन से जुड़ी बीमारियां होने लगती हैं। ठंड की वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है, जो सूरज की किरणों से मिलता है। ये सूर्यदेव को अर्घ्य देने और पूजा करने के दौरान जो किरणें शरीर पर पड़ती हैं उनसे मिलता है।
सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा से मानसिक बीमारियां होने का खतरा भी कम हो जाता है। शीत ऋतु के कारण पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। सूरज की किरणों में रहने से वो भी ठीक रहती है।
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