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होली के बाद सातवें और आठवें दिन देवी शीतला माता की पूजा की परंपरा है। इन्हें शीतला सप्तमी या शीतलाष्टमी कहा जाता है। वहीं कुछ जगहों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन ही की जाती है। शीतला माता का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक के साथ ही अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है।
शीतला सप्तमी और अष्टमी
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि देश में कुछ जगह शीतला माता की पूजा चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है। इस बार ये तिथियां 3 और 4 अप्रैल को रहेंगी। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता रूद्र होते हैं। दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है। निर्णय सिंधु ग्रंथ के मुताबिक इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है। इसलिए सप्तमी पर पूजा और व्रत 3 अप्रैल को किया जाना चाहिए। इसी तरह शीतलाष्टमी 4 अप्रैल को मनाई जानी चाहिए।
शीतला सप्तमी 3 अप्रैल, शनिवार
सप्तमी तिथि शुरू होने का समय - 3 अप्रैल को सुबह 06 बजे से
सप्तमी तिथि खत्म होने का समय - 4 अप्रैल को सुबह 04:12 पर
शीतला अष्टमी 4 अप्रैल, रविवार
अष्टमी तिथि शुरू होने का समय - 4 अप्रैल को सुबह 04:13 से
अष्टमी तिथि खत्म होने का समय - 5 अप्रैल को रात 03 बजे तक
केवल इसी व्रत में किया जाता है ठंडा भोजन
शीतला माता का ही व्रत ऐसा है जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन किया जाता है। इस व्रत पर एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है। माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव किया जाता है। इसलिए ठंडा भोजन करने की परंपरा बनाई गई है। धर्म ग्रंथों के अनुसार शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा भोजन करने से संक्रमण एवं अन्य तरह की बीमारियां नहीं होती।
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