आश्विन महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 2 अक्टूबर को रहेगी। इसे इंदिरा एकादशी कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष में होने के कारण ये तिथि और भी खास मानी जाती है। इस दिन तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाने से पितरों को तृप्ति मिलती है। इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा और व्रत रखने का विधान है।
एकादशी के स्वामी और पितरों के देवता विश्वदेव
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि एकादशी तिथि के स्वामी विश्वदेव हैं। जो कि पितरों के भी देवता होते हैं। इसलिए एकादशी तिथि पर किया गया श्राद्ध कई गुना पुण्य देने वाला और पितरों को पूरी तरह तृप्त करने वाला होता है। उन्होंने बताया कि उपनिषदों में भी कहा गया है कि भगवान विष्णु की पूजा से पितृ संतुष्ट होते हैं। यही कारण है कि इंदिरा एकादशी पर तुलसी और गंगाजल से किए गए तर्पण से पितृ प्रसन्न होते हैं।
एकादशी पर पेड़ लगाने का विधान
डॉ. मिश्र बताते हैं कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितरों को तृप्ति मिलती है। इस पर्व पर आंवला, तुलसी, अशोक, चंदन या पीपल का पेड़ लगाने से भगवान विष्णु के साथ ही पितृ भी प्रसन्न होते हैं। इससे कोई पूर्वज जाने-अनजाने में किए गए अपने किसी पाप की वजह से यमराज के पास दंड भोग रहे हों तो उन्हें इससे मुक्ति मिलती है।
सात पीढ़ियों के पितरों की तृप्ति
काशी विद्वत परिषद के मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी का कहना है कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने वाले को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। विष्णुधार्मोत्तर पुराण का भी कहना है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति की सात पीढ़ियों के पितृ तृप्त हो जाते हैं। पं. द्विवेदी बताते हैं कि जितना पुण्य कन्यादान और कई सालों की तपस्या करने पर मिलता है उतना ही पुण्य एकमात्र इंदिरा एकादशी व्रत करने से मिल जाता है।
व्रत और पूजा विधि
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