आज नाग पंचमी है। पुराने समय में राजा जनमेजय ने पृथ्वी के सभी नागों को मारने के लिए नागदाह यज्ञ किया था। इस संबंध में महाभारत की एक कथा प्रचलित है। प्राचीन समय में राजा जनमेजय का शासन था। जब जनमेजय को ये मालूम हुआ कि उसके पिता परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई है तो वे बहुत क्रोधित हो गया। जनमेजय ने नागों से बदला लेने के लिए नागदाह यज्ञ करने का निर्णय लिया।
जब जनमेजय ने नागदाह यज्ञ शुरू किया तो धरती सभी सांप यज्ञ कुंड में गिरने लगे। ऋषि-मुनि नागों के नाम ले-लेकर आहुति दे रहे थे और सांप कुंड में गिर रह थे। इस यज्ञ से डर कर तक्षक नाग देवराज इंद्र के पास जाकर छिप गया।
उस समय एक मुनि थे आस्तिक। जब आस्तिक मुनि को नागदाह यज्ञ के बारे में पता चला तो वे यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। जनमेजय ने आस्तिक मुनि को प्रणाम किया। तब आस्तिक मुनि राजा जनमेजय से नागदाह यज्ञ बंद करने के लिए कहा।
जनमेजय ने यज्ञ बंद करने से मना कर दिया, लेकिन कुछ ऋषियों ने राजा को समझाया तो वे यज्ञ खत्म करने के लिए तैयार हो गए। इस तरह आस्तिक मुनि की वजह से नाग भस्म होने से बच गए।
ये है आस्तिक मुनि से जुड़ी कथा
पुराने समय में नागों की माता कद्रू सभी नाग पुत्रों से गुस्सा हो गई थी। गुस्सा होकर कद्रू ने शाप दिया था कि जब राजा जनमेजय सर्प यज्ञ करेंगे तो सभी नाग उसमें भस्म हो जाएंगे। नागराज वासुकि माता कद्रू के शाप से बहुत चिंतित हो गए।
उस समय एलापत्र नाम के एक नाग ने वासुकि को बताया कि यज्ञ में सिर्फ बुरे नाग ही भस्म होंगे और यज्ञ के समय जरत्कारू ऋषि के पुत्र आस्तिक मुनि इस यज्ञ को रोक देंगे। जरत्कारू ऋषि से नागों की बहन मनसादेवी का विवाह होगा।
कुछ समय बाद नागराज वासुकि ने अपनी बहन मनसा का विवाह ऋषि जरत्कारू से करवा दिया। मनसादेवी को एक पुत्र हुआ, उसका नाम आस्तिक रखा गया। आस्तिक का पालन नागराज वासुकि ने ही किया था। च्यवन ऋषि ने आस्तिक को वेदों का ज्ञान दिया था। बाद में आस्तिक मुनि ने ही नाग को भस्म होने से बचा लिया।
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