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पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत किया जाता है। कहते हैं। इस एकादशी का महत्व पुराणों में भी लिखा है। इस बार यह एकादशी व्रत 24 जनवरी को किया जाएगा। पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत से योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद साफ जगह पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। शंख में पानी लेकर प्रतिमा का अभिषेक करें। भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाएं। चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि से पूजा करें। इसके बाद दीपक जलाएं। पीले वस्त्र अर्पित करें। मौसमी फलों के साथ आंवला, लौंग, नींबू, सुपारी भी चढ़ाएं। इसके बाद गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। रात को मूर्ति के पास ही जागरण करें। भगवान के भजन गाएं। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद ही उपवास खोलें।
पुत्रदा एकादशी की कथा पहले किसी समय में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी, इसलिए दोनों पति -पत्नी सदा चिन्ता में रहते थे। इसी चिंता में एक दिन राजा सुकेतुमान वन में चले गए। वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने उन सभी मुनियों की वंदना की। प्रसन्न होकर मुनियों ने राजा से वरदान मांगने को कहा। मुनि बोले कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकदाशी कहते हैं। उस दिन व्रत रखने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। तुम भी वही व्रत करो। ऋषियों के कहने पर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भ धारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा न्याय पूर्वक शासन किया।
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