हमारे कर्मों से ही हमारा भाग्य बनता है। अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो भाग्य अच्छा होगा और अगर हमसे कोई गलती हो गई है तो भविष्य में उसकी वजह से हमें दुखों का सामना करना पड़ सकता है। रामायण में राजा दशरथ ने श्रीराम को राजा बनाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली थीं। अगले दिन श्रीराम का राजतिलक होने वाला था।
राजतिलक से पहले वाली रात जब राजा दशरथ कैकयी के पास पहुंचे तो कैकयी ने अपने दो वर मांग लिए, एक भरत को राज और दूसरा राम को 14 वर्ष का वनवास। दशरथ ने कैकयी को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कैकयी नहीं मानीं। इसके बाद जिस दिन श्रीराम का राजतिलक होना था, उसी दिन राम, लक्ष्मण और सीता को वनवास जाना पड़ गया।
श्रीराम के वनवास जाने के बाद राजा दशरथ को इस बात एहसास हुआ कि हमारे ही कर्मों से भाग्य बनता है। हम जैसे-जैसे काम करते हैं, हमें भविष्य में वैसे-वैसे फल मिलते हैं। हम सही कर्म करते रहना चाहिए।
राजा दशरथ को याद आई अपनी गलती
श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनवास जा चुके थे। इसके बाद राजा दशरथ जब कौशल्या जी के बैठे थे, तब उन्हें अपनी एक गलती याद आई। राजा दशरथ जब युवा थे तो उन्होंने गलती से श्रवण कुमार को बाण मार दिया था। इस कारण श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी।
श्रवण कुमार बूढ़े माता-पिता का एक ही सहारा था। बूढ़े माता-पिता को जब श्रवण कुमार की मृत्यु की सूचना मिली तो उन्होंने दशरथ को भी पुत्र वियोग में तड़पने का शाप दे दिया था।
दशरथ इस गलती को याद करके समझ गए कि हमें जो कुछ मिलता है, उसके पीछे हमारे ही कर्म होते हैं। इसलिए हमें अपने कर्मों के संबंध में सतर्कता रखनी चाहिए। कभी ऐसा कोई काम न करें, जो गलत है और उसकी वजह से हमें परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
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