गुरुवार, 12 अगस्त को सावन महीने के शुक्ल पक्ष की विनायकी चतुर्थी है। इसे दूर्वा गणपति व्रत भी कहा जाता है। इस तिथि पर गणेश जी को दूर्वा खासतौर पर चढ़ाई जाती है। दूर्वा एक खास प्रकार की घास होती है। ये घास गणेश जी को अर्पित करने की परंपरा है।
सावन, चतुर्थी और गुरुवार का योग होने से इस दिन शिव जी, विष्णु जी और गणेश जी के पूजा एक साथ करने का बहुत ही शुभ मुहुर्त है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार गणेश पूजा में वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर हम चाहें तो श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
ऐसे कर सकते हैं गणेश जी, शिव जी और विष्णु जी की पूजा
स्नान के बाद घर के मंदिर में सोने, चांदी, पीतल, तांबा या मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा रखें। साथ ही शिवलिंग और विष्णु जी की प्रतिमा भी रखें। इन देवताओं को जल से अभिषेक कराएं। अभिषेक के बाद वस्त्र अर्पित करें। हार-फूल चढ़ाएं, तिलक लगाएं। सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, प्रसाद चढ़ाएं। भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं।
श्री गणेशाय नम:, ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्रों का जाप करते रहें। दीपक जलाकर आरती करें। आरती के बाद पूजा में हुई जानी-अनजानी भूल के लिए क्षमा याचना करें। घर के सदस्यों को प्रसाद वितरीत करें और खुद भी ग्रहण करें।
अगर कोई भक्त चतुर्थी व्रत करना चाहता है तो भगवान गणेश के सामने व्रत करने का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। व्रत में फलाहार कर सकते हैं। पानी, दूध, फलों का रस आदि चीजें भी ले सकते हैं।
ज्योतिष में गुरुवार का कारक ग्रह बृहस्पति को माना गया है। बृहस्पति ग्रह की पूजा शिवलिंग रूप में ही की जाती है। इस दिन शिवलिंग पर बेसन के लड्डू का भोग लगाना चाहिए। पीले और चने की दाल चढ़ाने से देव गुरु बृहस्पति की कृपा मिल सकती है। कुंडली में गुरु ग्रह से संबंधित दोष होने पर गुरुवार को गुरु ग्रह का पूजन करने की परंपरा है।
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