द्वापर युग के अंत में राजा परीक्षित को शाप मिला था कि सात दिन बाद तक्षक नाग उन्हें डंसेगा। इस शाप के बाद परीक्षित का मन अशांत हो गया, वे जीवन से जुड़े रहस्य जानने के लिए शुकदेव जी के पास पहुंचे।
शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई। इस दौरान उन्होंने कहा कि एक दिन पृथ्वी ने भगवान से कहा था कि ये राजा-महाराज खुद ही मौत के खिलौने हैं और ये सभी मुझे जीतने के लिए एक-दूसरे पर आक्रमण करते रहते हैं, लेकिन आज तक कोई भी मुझे यानी धरती को अपने साथ नहीं ले जा सका है। फिर भी ये लोग लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
शुकदेव जी ने आगे कहा कि आज जो झगड़े हैं, वे सभी धन-संपत्ति के लिए ही हैं। लोग चाहते हैं कि उनके पास दूसरों से ज्यादा धन हो, सुख-सुविधाएं हों, बस इन्हीं इच्छाओं की वजह से सारी समस्याएं हैं। नहुष, भरत, शांतनु, रावण, हिरण्याक्ष, तारकासुर, कंस जैसे बड़े-बड़े शक्तिशाली राजा भी खाली हाथ ही गए हैं, इसलिए इन चीजों का मोह छोड़ देना चाहिए।
ये बातें सुनने के बाद परीक्षित ने पूछा कि जीवन में इतनी अशांति है तो शांति पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
शुकदेव जी ने उत्तर दिया कि मन अशांत है, विचार नकारात्मक हैं तो हमें भगवान का ध्यान करना चाहिए, मंत्र जप करना चाहिए। जब हम लंबे समय तक ध्यान के साथ जप करते हैं तो विचारों की नकारात्मकता दूर हो जाती है और मन शांत हो जाता है।
परीक्षित ने शुकदेव जी से सात दिनों तक भागवत कथा सुनी। कथा सुनने के बाद परीक्षित का मन शांत हो गया, जन्म-मृत्यु का डर खत्म हो गया, सांसारिक चीजों से उनका मोह भी खत्म हो गया था। सातवें दिन तक्षक नाग ने उन्हें डंस लिया था।
प्रसंग की सीख
इस प्रसंग की सीख ये है कि जो लोग रोज योग, मेडिटेशन करते हैं, मंत्र जप करते हैं, उनका मन शांत रहता है। इन अच्छी आदतों की वजह से नकारात्मक दूर होती है। हमारी सेहत अच्छी बनी रहती है।
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