धन-संपत्ति और सुख-सुविधाएं होने के बाद भी शांति नहीं मिल पाती है। इसकी वजह है अशांत मन। अगर मन व्यर्थ विचारों में उलझा रहेगा तो हम कभी भी शांति प्राप्त नहीं कर सकते हैं। शांति कैसे मिल सकती है, इस संबंध में चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का एक किस्सा बहुत प्रचलित है।
जब चीन में अलग-अलग राज्य बन हुए थे। उस समय लोग एक-दूसरे पर लोग आक्रमण करते रहते थे। उस दौर में कन्फ्यूशियस का जन्म हुआ था। वे बहुत ही विद्वान थे। उस वजह से लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते थे।
एक दिन चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस के पास एक व्यक्ति आया और बोला कि मेरे पास सुख-सुविधा की हर चीज है, मैं अपने काम बहुत सावधानी से करता हूं, सेहत भी अच्छी रहती है, लेकिन मेरा मन शांत नहीं है। कृपया आप बताइए मुझे शांति कैसे मिल सकती है।
कन्फ्यूशियस ने उस व्यक्ति से प्रश्न पूछा कि एक बात बताओ तुम देखते-सुनते कैसे हो, किसी चीज का स्वाद कैसे मालूम करते हो?
उस व्यक्ति जवाब दिया कि मैं आंखों से देखता हूं, कानों से सुनता हूं और जीभ से स्वाद लेता हूं।
ये बात सुनकर कन्फ्यूशियस बोले कि हम जितना आंखों से देखते हो, उससे कहीं ज्यादा मन से देखते हैं। मन कानों से ज्यादा सुनता है और जीभ से ज्यादा स्वाद मन लेता है।
जब तक हमारा मन ये तीन काम करते रहेगा, हम शांत नहीं हो सकते हैं। सबसे पहले मन को काबू करना चाहिए। हमें सिर्फ आंखों से देखने की आदत डालनी चाहिए, जीभ को ही स्वाद लेने दें, सिर्फ कानों से सुनें। हमें अपने मन को इन तीनों कामों से अलग रखना चाहिए। तभी हमारा मन शांत हो सकता है।
कन्फ्यूशियस की सीख
जब तक हमारा मन इधर-उधर की बातों में भटकते रहता है, हम शांत नहीं हो सकते हैं। इसलिए मन को व्यर्थ बातों से दूर रखें और मन को एकाग्र करें, तभी हमें शांति मिल सकती है।
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