9 जनवरी, रविवार को पौष महीने का सप्तमी पर्व रहेगा। इस संयोग में वार, तिथि और महीने के स्वामी सूर्य होने से इस दिन भगवान भास्कर की पूजा का कई गुना शुभ फल मिलेगा। धर्म ग्रंथों के जानकारों का कहना है कि इस दिन व्रत और पूजा से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। साथ ही कई यज्ञ करने जितना पुण्य भी मिलता है। पुराणों का कहना है कि पौष महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि अगर रविवार को हो तो ये दिन सूर्य पर्व हो जाता है।
स्कंद और पद्म पुराण में सूर्य पूजा
पौष महीने में सूर्य उपासना की परंपरा है। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है। स्कंद और पद्म पुराण में कहा गया है कि इस महीने में सूर्य को जल चढ़ाने से पुण्य मिलता है और पाप भी खत्म हो जाते हैं। धर्म ग्रंथों के जानकार पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि वेदों में सूर्य को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। इसलिए सूर्य उपासना से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
बिना नमक के व्रत का विधान
पौष महीने में भानू सप्तमी के संयोग में भगवान सूर्य की पूजा के साथ ही दिनभर व्रत भी रखा जाता है। इस दिन व्रत के दौरान एक बार भी नमक नहीं खाया जाता। इस पर्व पर बिना नमक का व्रत करने से यश, धन और उम्र बढ़ती है।
इस दिन क्या करें: भानू सप्तमी पर सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। इस दिन पानी में तिल मिलाकर नहाएं। लाल कपड़े पहनें और लाल चंदन का तिलक लगाकर तांबे के लोटे में पानी भर कर सूर्य को जल चढ़ाएं। दिन में जरूरतमंद लोगों को गुड़, तिल और गर्म कपड़े दान करें।
धर्म ग्रंथों के अनुसार भानू सप्तमी पर सूर्य को जल चढ़ाने का महत्व
स्कंद और पद्म पुराण के अनुसार सूर्य को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है। उन्हें भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाला भी कहा जाता है। इसलिए पौष महीने में सूर्यदेव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य मिलता है।
1. पौष महीने की सप्तमी तिथि पर सूर्य को जल चढ़ाने से सम्मान मिलता है।
2. सफलता और तरक्की के लिए भी सूर्यदेव को जल चढ़ाया जाता है।
3. दुश्मनों पर जीत के लिए भी सूर्य को जल चढ़ाया जाता है।
4. वाल्मीकि रामायण के अनुसार युद्ध के लिए लंका जाने से पहले भगवान श्रीराम ने भी सूर्य को जल चढ़ाकर पूजा की थी। इससे उन्हें रावण पर जीत हासिल करने में मदद मिली।
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