बुधवार, 15 जून से हिन्दी पंचांग का नया महीना आषाढ़ शुरू हो गया है। इस बार आषाढ़ महीने की शुरुआत मिथुन संक्रांति के साथ हुई है। सूर्य ने वृष राशि से मिथुन राशि में प्रवेश कर लिया है। आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि (30 जून से 8 जुलाई तक), भड़ली नवमी (8 जुलाई), देवशयनी एकादशी (10 जुलाई) जैसे व्रत-उत्सव आएंगे। ये महीना 15 जून से 13 जुलाई तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्य पं. निलेश शास्त्री के मुताबिक सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो इसे संक्रांति कहा जाता है। 15 जून को ये ग्रह वृष से मिथुन में प्रवेश कर रहा है, इस कारण इसे मिथुन संक्रांति कहा जाता है। हिन्दी पंचांग में संक्रांति को एक पर्व की तरह माना जाता है। इस दिन दान-पुण्य करने का महत्व काफी अधिक है। संक्रांति के साथ आषाढ़ माह की शुरुआत होने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है।
गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 30 जून से हो रही है। इस नवरात्रि में दस महाविद्याओं के लिए साधना की जाती है। आषाढ़ माह में शिव जी, देवी पार्वती के साथ ही विष्णु जी के लिए विशेष पूजा पाठ करने की परंपरा है। आषाढ़ माह में की गई पूजा अक्षय पुण्य प्रदान करती है।
गुप्त नवरात्रि में रहेगा 7 दिन रहेंगे शुभ योग
एक साल में चार बार नवरात्रि आती है। चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि सामान्य होती है, जबकि आषाढ़ और माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। हिन्दी नव वर्ष की दूसरी नवरात्रि 30 जून से शुरू होगी। इस नवरात्रि में साधक गुप्त रूप में भगवती दशमहाविद्याओं और भैरव महाराज की साधना करते हैं। इस बार गुप्त नवरात्रि में कई शुभ योग रहेंगे। रवियोग में की गई खरीदारी बहुत शुभ होती है। गुप्त नवरात्रि का समापन 8 जुलाई को होगा। 30 जून को सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग रहेगा। 1 जुलाई को रवियोग भृगु पुष्य नक्षत्र योग, 1 जुलाई से 8 जुलाई तक रवियोग, 5 जुलाई को त्रिपुष्कर योग, 6 जुलाई को सर्वार्थ सिद्धि योग, 8 जुलाई को रवि योग के साथ गुप्त नवरात्रि का समापन होगा।
आषाढ़ महीने में करें शिव जी और विष्णु जी की विशेष पूजा
आषाढ़ महीने में रोज सुबह उठना चाहिए और शिव जी के साथ विष्णु जी की विशेष पूजा करनी चाहिए। अगर समय अभाव है तो रोज सुबह गणेश पूजा करें और इसके बाद शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल, धतूरा, प्रसाद आदि चीजें चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का का शंख से अभिषेक करें। हार-फूल, वस्त्र-आभूषण आदि शुभ चीजें भगवान को चढ़ाएं और धूप-दीप जलाकर आरती करें।
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