ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक मंगलवार को जब सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में या एक-दूसरे के पास वाली राशि में स्थित होते हैं तो भौमावस्या का योग बनता है। इस बार ये योग 21 मार्च को चैत्र मास की अमावस्या पर बन रहा है। इस दिन मंगल मिथुन राशि में रहेगा और अमावस्या के स्वामी शनि खुद की ही राशि में होंगे। जिससे इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।
भौमावस्या पर मंगल दोष की पूजा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि मंगलवार को पड़ने वाली इस अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा की जाए तो परिवार के रोग, शोक और दोष खत्म हो जाते हैं। मंगलवार को अमावस्या होने से इस दिन मंगल दोष से बचने के लिए व्रत और पूजा की जाती है। इस शुभ संयोग में गुड़ या शहद का दान करने से मंगल दोष में कमी आती है। इस योग में हनुमान जी की पूजा करने से भी मंगल दोष कम होता है।
शनिदेव अमावस्या के अधिपति
चैत्र अमावस्या इस बार इसलिए खास है, चूंकि अमावस्या के अधिपति देवता खुद शनि है। इस दिन दान-पुण्य का कई गुना फल मिलता है। डॉ. मिश्र ने बताया कि अमावस्या के दिन शनि स्वराशि में अधिक बलवान रहेंगे। अमावस्या का दिन हो और शनि कुंभ राशि में हो तो वृद्ध और रोगियों की सेवा करना शुभ फलदायी रहेगा।
भौमावस्या पर दान से पुण्य
भौमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व बताया है। इस दिन दान करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में स्नान और दान करने से हजार गायों के दान का पुण्य फल मिलता है।
भौमवती अमावस्या पर हरिद्वार, काशी जैसे तीर्थ स्थलों और पवित्र नदियों पर स्नान करने का विशेष महत्व होता है। अगर तीर्थ में नहीं जा सकते तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से भी इसका पुण्य प्राप्त होता है।
स्नान-दान का महत्व
इस दिन कुरुक्षेत्र के ब्रह्मा सरोवर में डूबकी लगाने का भी बहुत अधिक पुण्य माना गया है। इस स्थान पर भौमवती अमावस्या के दिन स्नान और दान करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से सुबह करीब 11.16 तक की अवधि में अमावस्या तिथि के दौरान स्नान और दान करने का खास महत्व होता है।
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