धनतेरस 22 ओर 23 अक्टूबर, दोनों दिन मनेगी। आज दिनभर खरीदारी होगी। शाम को धन्वंतरि पूजा और यम के लिए दीपदान किया जाएगा। 23 अक्टूबर को भी पूरे दिन खरीदारी के लिए मुहूर्त रहेंगे। धनतेरस से ही पांच दिनों का दीपोत्सव पर्व शुरू हो जाता है। इस दिन आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि प्रकट हुए थे। इसलिए इनकी पूजा होती है। धनतेरस पर खासतौर से बर्तन और सोना खरीदने की भी परंपरा है।
अमृत लेकर प्रकट हुए थे धन्वंतरि
समुद्र मंथन की कथा के मुताबिक महर्षि दुर्वासा के श्राप की वजह से स्वर्ग श्रीहीन हो गया। सभी देवता विष्णु के पास पहुंचे। उन्होंने देवताओं से असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा। कहा कि इससे अमृत निकलेगा और समृद्धि आएगी।
देवताओं ने ये बात असुरों के राजा बलि को बताई। वे भी मंथन के लिए राजी हो गए। इस मंथन से ही लक्ष्मी, चंद्रमा और अप्सराओं के बाद धन्वंतरि कलश में अमृत लेकर निकले थे। धन्वंतरि त्रयोदशी को अमृत कलश के साथ निकले थे। यानी समुद्र मंथन का फल इसी दिन मिला था। इसलिए दिवाली का उत्सव यहीं से शुरू हुआ।
बर्तन और सोना खरीदने की परंपरा
धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक कहा गया है। विष्णु पुराण में निरोगी काया को ही सबसे बड़ा धन माना है। धन्वंतरि त्रयोदशी के दिन ही अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इसे धनत्रयोदशी या धनतेरस कहते हैं।
वे सोने के कलश के साथ आए थे। इसलिए इस दिन बर्तन और सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है। पांच दिन का दीप उत्सव भी धनतेरस से ही शुरू होता है। इस दिन घरों की सफाई और रंग कर, रंगोली बनाकर शाम को दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का आह्वान किया जाता है।
यम के लिए दीपदान का दिन
इस त्योहार का संबंध यमराज से है। इस दिन शाम को घर के बाहर मेनगेट पर दक्षिण दिशा में एक बर्तन में अन्न रखकर उस पर यमराज के लिए दीपदान करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। पुराणों में भी इस बात का जिक्र हैं कि यम ने खुद कहा है कि जो धनतेरस पर श्रद्धा से उनके लिए दीपदान करता है उसकी असामयिक मृत्यु नहीं होती।
यमुना, यमराज की बहन हैं, इसलिए धनतेरस के दिन यमुना नदी में नहाना विशेष फलदायी माना गया है। ऐसा न हो पाए तो घर पर ही पानी में यमुना नदी का जल मिलाकर नहाने से भी इसका पुण्य मिल जाता है।
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