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बुधवार, 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। इस तिथि पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा है। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है। तुलसी का धर्म के साथ ही आयुर्वेद में भी महत्व बताया है। घर-आंगन में तुलसी होने से पवित्रता के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार तुलसी और शालिग्राम के विवाह से जुड़ी कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताई गई है। कथा के अनुसार पुराने समय में तुलसी, शंखचूड़ नाम के असुर की पत्नी थी। शंखचूड़ अधर्मी था। देवता और मनुष्य, सभी इस असुर से त्रस्त थे। तुलसी के सतीत्व की वजह से सभी देवता शंखचूड़ का वध नहीं कर पा रहे थे।
तब सभी देवता भगवान विष्णु और शिवजी के पास पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। जिससे शंखचूड़ की शक्ति खत्म हो गई और शिवजी ने उसका वध कर दिया।
बाद में जब तुलसी को ये बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। विष्णुजी ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर पौधे और नदी के रूप में रहोगी और तुम्हारी पूजा भी की जाएगी। मेरे भक्त तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। तुलसी नेपाल की गंडकी और पौधे के रूप में आज भी धरती पर हैं। गंडकी नदी में ही शालिग्राम मिलते हैं।
घर में ध्यान रखें तुलसी से जुड़ी 10 बातें
तुलसी पूजा करते समय तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करना चाहिए
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतनामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलभेत।।
ये है मंत्र जाप की सरल विधि
सूर्यास्त के बाद स्नान करें। इसके बाद तुलसी की पूजा करें। तुलसी को गंध, फूल, लाल वस्त्र अर्पित करें। फल का भोग लगाएं। घी का दीपक जलाएं। तुलसी के सामने बैठकर तुलसी की माला से इस मंत्र का जाप करें। जाप की संख्या 108 होनी चाहिए।
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