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विश्वकर्मा जयंती पर मशीनरी की पूजा करने की है परंपरा:देवताओं को शिल्पकार हैं विश्वकर्मा; उन्होंने बनाई थी सोने की लंका और द्वारका नगरी

2 महीने पहले
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शुक्रवार, 3 फरवरी को विश्वकर्मा जयंती है। इस दिन देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की, अपने औजार और मशीनरी की विशेष पूजा की जाती है। वैसे विश्वकर्मा जयंती की तिथि के संबंध में मतभेद हैं। उत्तर भारत में फरवरी में और दक्षिण भारत में सितंबर में ये पर्व मनाया जाता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, देवी-देवताओं से जुड़े सभी निर्माण कार्य भगवान विश्वकर्मा ही करते हैं। त्रेतायुग में विश्वकर्मा जी ने सोने की लंका बनाई, पुष्पक विमान, द्वापर युग में द्वारका नगरी का निर्माण किया था। इनके अलावा देवी-देवताओं के महल, रथ, हथियार भी विश्वकर्मा ही बनाते हैं। ये पर्व उन लोगों के लिए बहुत खास है जो निर्माण कार्यों से जुड़े हैं, जैसे मकान बनाने वाले कारीगर, फर्नीचर बनाने वाले, मशीनरी से जुड़े लोग, कारखानों से जुड़े लोग। इन सभी लोगों के लिए विश्वकर्मा जयंती एक बड़ा पर्व है।

सोने की लंका से जुड़ी मान्यताएं

विश्वकर्मा जी के खास कामों में से एक है सोने की लंका का निर्माण। लंका के संबंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता है कि असुर माल्यवान, सुमाली और माली ने विश्वकर्मा जी से असुरों के लिए एक विशाल भवन बनाने की प्रार्थना की थी। इन तीन असुरों की प्रार्थना सुनकर विश्वकर्मा जी ने समुद्र किनारे पर त्रिकूट नाम के एक पर्वत पर सोने की लंका बना दी।

दूसरी मान्यता ये है कि सोने की लंका के राजा कुबेर देव थे। रावण कुबेर देव का सौतेला भाई था। जब रावण शक्तिशाली हुआ तो उसने अपने भाई कुबेर से सोने की लंका छिन ली थी। विश्वकर्मा जी ने कुबेर के लिए पुष्पक विमान भी बनाया था, इस विमान को भी रावण ने छिन लिया था।

श्रीकृष्ण के कहने पर बनाई थी द्वारक नगरी

द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण ने कंस का वश कर दिया तो कंस का ससुर जरासंध श्रीकृष्ण को मारने के लिए मथुरा पर बार-बार आक्रमण करने लगा। श्रीकृष्ण और बलराम हर बार उसे पराजित कर देते थे, लेकिन जब जरासंध के हमले ज्यादा बढ़ने लगे तो श्रीकृष्ण ने मथुरा की रक्षा के मथुरा छोड़ने का निर्णय ले लिया। उस समय श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा जी से सुरक्षित जगह पर एक अलग नगरी बनाने के लिए कहा था। तब विश्वकर्मा जी ने द्वारका नगरी का निर्माण किया। इसके बाद श्रीकृष्ण-बलराम और यदुवंशी द्वारका नगरी में रहने चले गए थे।

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