संवत्सर की आखिरी और अंग्रेजी कैलेंडर की पहली गुप्त नवरात्रि 22 जनवरी से शुरू हो गई जो कि 30 तारीख तक रहेगी। ये माघ मास में आने वाले नवरात्र हैं। इन दिनों दस महाविद्याओं के रूप में में देवी की पूजा और आराधना की जाती है। जिनका तंत्र शक्तियों और सिद्धियों में विशेष महत्व है। इन दिनों में तिल चौथ, वसंत पंचमी और सूर्य सप्तमी जैसे पर्व भी होंगे। जिससे ये नवरात्र और खास हो जाता है।
साल में चार बार नवरात्रि आती है। इनमें से दो प्रकट और दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। चारों ही सिद्धि देने वाली होती हैं। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में की गई पूजा-आराधना से मनोकामना पूरी होती है और परेशानियों से मुक्ति मिलती है। गुप्त नवरात्र में साधक सन्यासी, सिद्धि पाने के लिए देवी की उपासना करते हैं। वहीं प्रकट नवरात्र में गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग देवी के 9 रूपों की पूजा करते हैं।
ऐसे करें पूजन
गुप्त नवरात्रि में नौ दिन के लिए कलश स्थापना की जा सकती है। कलश स्थापना करने पर सुबह-शाम मंत्र जाप, चालीसा या सप्तशती का पाठ करें। साथ ही आरती भी करें। मां को दोनों समय भोग भी लगाएं। सबसे सरल और उत्तम भोग है लौंग और बताशा। मां के लिए लाल फूल सर्वोत्तम होता है। पूरे नौ दिन अपना खान-पान और आहार सात्विक रखें।
इन माताओं की होती है पूजा: गुप्त नवरात्रि में माता की 10 महाविद्याओं की आराधना की जाती है। इनके नाम हैं काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छित्रमस्तका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।
तिल कुंद चौथ 25 को
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भी गणेश जी की तिल से पूजा करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इस तिथि पर सुबह जल्दी उठकर गणेशजी की पूजा के साथ पूरे दिन व्रत करने का संकल्प लेते हैं। फिर पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम को गणेश जी की पूजा कर के तिल का नैवेद्य लगाते हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं। ऐसे व्रत और पूजा करने से सुख और सौभाग्य बढ़ता है।
वसंत पंचमी 26 को
माघ महीने की गुप्त नवरात्र की पांचवीं तिथि को वसंत पंचमी मनाई जाती है। इस तिथि पर मंदिरों और घरों में देवी सरस्वती की पूजा कर विद्या-बुद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है। इस दिन विद्यारंभ संस्कार करते हुए कई बच्चों की पढ़ाई शुरू की जाती है। बच्चों को पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है।
रथ सप्तमी 28 को
माघ की गुप्त नवरात्र के सातवें दिन यानी सप्तमी पर सूर्य पूजा का विधान पुराणों में बताया गया है। इस दिन सूर्योदय के समय तीर्थ स्नान के लिए जाते हैं। ये माना जाता है कि इस समय के दौरान तीर्थ स्नान करने पर बीमारियों से मुक्ति मिलती है और उसे एक अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस कारण रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
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