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जिले के आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रतिनिधियों ने सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए गुरुवार को ज्ञापन सौंपा। राष्ट्रपति को प्रेषित ज्ञापन में प्रतिनिधियों ने अविलंब सरना धर्म कोड लागू करने की मांग की। साथ ही आगाह किया कि इसी महीने तक इस पर सरकार निर्णय नहीं ली तो 31 जनवरी को रेल रोड पर परिचालन ठप करेंगे। ज्ञापन देने के बाद बिहार प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ टुड्डू ने कहा कि 15 करोड़ आदिवासियों को संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत जाति का मान्यता आदिवासी या अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। पर अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की मान्यता “सरना धर्म” हासिल नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को मौलिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। 2021 में देश में जनगणना होनी है। संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत कोई नागरिक अपनी धर्म को मानने व प्रचार करने के लिए स्वतंत्र है। टड्ुड्डू ने कहा कि आदिवासियों को संवैधानिक मौलिक अधिकार से वंचित करना उनके साथ घोर अन्याय और पक्षपातपूर्ण है। हम भारत के अधिकांश आदिवासी प्रकृति पूजा में विश्वास करते हैं। इस पूजा पद्धति एवं संस्कृति को सरना धर्म के नाम से स्वीकार एवं प्रचलित किया गया है। प्रकृति पूजा में आदिवासी सूरज, चांद, धरती, पर्वत, नदी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि की आराधना एवं पूजा करते हैं। हम मूर्ति पूजक नहीं हैं। हमारे बीच वर्ण व्यवस्था, दहेज प्रथा, ऊंच-नीच आदि का व्यवहार नहीं है। हम प्रकृति को ही अपना पालनहार और ईश्वर के रूप में पूजते हैं। हमारी धार्मिक सोच, संस्कार, विश्वास अन्य धर्मों से भिन्न है। दूसरे धर्मों के साथ जुड़ना हमारे स्वभाव और संस्कृति के खिलाफ है। जैन और बौद्ध धर्म को मानने वालों की जनसंख्या सरना धर्म मानने वालों से बहुत कम है फिर भी उन्हें मान्यता मिल गयी है। लेकिन आदिवासियों के मांग की सरकार अनदेखी करती रही है। सरना धर्म मानने वाले लगभग 15 करोड़ आदिवासियों को जबरन हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि बनाया जा रहा है।
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