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चैत्र महीना को चेतना का मास, एक पवित्र माह माना जाता है। वह महीना जिसमें भगवान राम का जन्म हुआ। देवताओं मे प्रधान भगवान विष्णु ने इसी महीने में पाताल में खोए वेदों को ढूंढ कर भविष्य के प्रकाश पुंज के लिए संचित कर दिया था। गोसपुर निवासी आचार्य पंडित धर्मेंद्र नाथ बताते हैं कि सनातन धर्म शास्त्र के अंतर्गत वैसे तो चारों नवरात्रा अपने आप में साधना के दृष्टिकोण से विशेष है किंतु आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से आश्विन एवं चैत्र की नवरात्रि विशेष है।
भारतीय अध्यात्म और धर्म में जितने भी प्रकार के व्रत उपवास का विधान किया जाता है नवरात्र उन सब में श्रेष्ठ है। इस नवरात्र को वासन्तिक नवरात्रि भी कहते हैं। ऋतुओं का यह संधि काल मनुष्य के स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं होता है। बदलते मौसम में चैत्र नवरात्र का व्रत, पूजा-उपासना आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
यह नवरात्र का पर्व अध्यात्म और धर्म की देन है जो साधकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। सर्वार्थ सिद्धि योग में शुरू हो रहा चैत्र नवरात्र : नवरात्र शब्द में नव का अर्थ केवल नौ ही नहीं अपितु नवीन व नया का भी बोध कराता है। नव शब्द परिवर्तन का द्योतक है। इसके अनुसार हमें बाहर के परिवर्तन के साथ आंतरिक परिवर्तन को भी स्वीकार करना होगा।
शरीर के नकारात्मक ऊर्जा के स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए ही हम देवी की आराधना व्रत अनुष्ठान करते हैं। इस बार यह चैत्र नवरात्र चैत्र शुक्ल पक्ष में दिनांक 13-04-2021 (दिन मंगलवार) को अश्विनी नक्षत्र के योग होने से सर्वार्थ सिद्ध योग के साथ अमृत योग में होने से अमृतत्व की प्राप्ति करवाएगी।
13 से शुरू होकर 22 को हो रहा नवरात्र सम्पन्न
13 अप्रैल को नवरात्र आरम्भ, कलशस्थापन, 14 अप्रैल को रेमंत पूजन, 15 अप्रैल को गौरी तृतीया व्रतम, जूड़ शीतल, 17 अप्रैल को लक्ष्मी पूजन, षष्ठी व्रत एक भुक्त (खरना), 18 अप्रैल को सूर्य षष्ठी व्रत, सायं कालीन अर्घ दान, बेलनोती, 19 अप्रैल को प्रात: कालीन अर्घ दान, पत्रिका प्रवेश, महारात्रि निशा पूजा, 20 अप्रैल को महाअष्टमी व्रत, 21 अप्रैल को महानवमी व्रत, तृशूलिनी पूजा, राम नवमी व्रत, रामावतार, हनुमादधवजदानम, भिक्षाग्रहणं एवं 22 अप्रैल को विजयादशमी, अपराजिता पूजा, देवी विसर्जनम, जयंती धारणम, नवरात्र व्रत पारणम।
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