जिले के कोईलवर व संदेश प्रखंड का सोन नदी का तटवर्ती क्षेत्र आलू उत्पादन के लिए विख्यात है। कोईलवर प्रखंड के सोन नदी का तटवर्ती इलाका राजापुर, जमालपुर, हरिपुर, कोईलवर, फरहंगपुर, बहियारा, चांदी, खनगांव, गोपालपुर व संदेश प्रखंड का अखगांव, नसरतपुर, नारायणपुर, चिलौस समेत अन्य पंचायतों में बलुआही मिट्टी पर आलू फसल की बंपर खेती हुई है।
आलू की अच्छी पैदावार देख किसान खुश हो गए है, लेकिन जैसा पैदावार हुआ है, उस अनुपात में आलू फसल का दाम नहीं मिल रहा है। किसानों ने बताया कि पिछले दो साल कोरोना महामारी के कारण व्यवसाय नहीं हो पाया था। इस बार अभी तक अच्छा बाजार नहीं मिल रहा है। किसान बताते है कि आलू फसल को पटना, आरा के थोक मंडी में भेजने पर भाड़ा अधिक लग रहा है।
और जो खरीदार खेत तक पहुंचकर आलू खरीद रहे हैं, वो भी औने-पौने दाम दे रहे है। जिससे आलू की फसल को कुछ लाभ में ही बेच रहे है, जिससे किसान मायूस भी है। हालांकि कई किसान आलू की फसल को कोल्ड स्टोर में रख रहे हैं। जिससे आने वाले समय मे महंगे दामों पर आलू को बेच सकें।
वाहनों का ढुलाई भाड़ा अधिक होने से मंडी तक नहीं पहुंचा रहे प्रखंड के किसान ललन कुमार, श्याम बाबू सिंह, मलेंद्र सिंह, सतीश सिंह, शशिकांत, वरुणकांत, मिथलेश सिंह, मुन्ना सिंह, मनोज सिंह, मंटू मिश्रा, कमलेश कुमार सिंह से बात करने पर बताया कि वाहनों के भाड़ा में वृद्धि होने के कारण खेत से थोक मंडी में फसल बेचने नहीं पहुंच पा रहे है।
व्यापारी खेत तक पहुंच रहे हैं, तो किसान औने-पौने दाम में फसल बेचने को विवश हैं। जबकि बाजार में उनके द्वारा बेचे गये आलू को व्यापारी खुदरा बाजार में महंगे दाम पर बेच रहे हैं। किसान गुड्डू सिंह के अनुसार एक बीघा में आलू की फसल की बुआई से लेकर उत्पादन करने तक लगभग तीस हजार रुपए का खर्च आता है।
जिसमे सबसे ज्यादा खर्च आलू की फसल को खेत से खुदाई कर निकालने में मजदूर को देना पड़ता है। एक बीघा में एक मजदूर को आलू निकालने के लिए पूरे दिन की मजदूरी ढाई पसेरी आलू देना पड़ता है। तीस मजदूर को लगाना पड़ता है। जबकि इसके बदले बीघा में पांच से सात हजार ही मुनाफा हो पाता है।
खेतो में खाद की जगह लाही का प्रयोग करते हैं
फरहंगपुर व बहियारा के अधिकांश किसान आलू की फसल बुआई के बाद खाद की जगह लाही को खेतों में डालते हैं। किसान ललन कुमार ने बताया कि खेतों में उर्वरक का कम से कम प्रयोग किया जाता है। खाद की जगह मुर्गी की लाही का प्रयोग किया जा रहा है। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ गयी हैं। साथ ही डीएपी और बुआई के बाद बीजोपचार के लिए चार बार कीटनाशक का प्रयोग भी किया जाता है।
पटवन पर भी खासा ध्यान रखा जाता है।जिससे आलू की फसल बड़ी और पुष्ट होती है। इतना मेहनत के बाद भी बाजार में सात सौ रुपए क्विंटल आलू का थोक मूल्य ही मिल रहा है। 1190 हेक्टेयर में आलू उत्पादन का लक्ष्य प्रखंड कृषि कार्यालय के नोडल पदाधिकारी नीरज कुमार सिंह ने बताया कि कोईलवर प्रखंड में आलू की फसल के लिए 1190 हेक्टेयर भूमि पर पैदावार का लक्ष्य था।
लक्ष्य के अनुरूप आलू की पैदावार हुई है। हालांकि पिछले साल लगभग 1200 हेक्टेयर भूमि पर आलू उत्पादन का लक्ष्य था। जिसमें उजले किस्म के आलू के अपेक्षा लाल आलू की मांग अधिक है। जो फसल मंडियों में काफी दिनों तक सुरक्षित रहता है। जिस कारण इसका मूल्य भी टाइट रहता है।
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