कोरोना संक्रमण के दौरान उसके प्रकोप ने साबुन और हाथों की साफ-सफाई के महत्व को और अधिक बढ़ा दिया है। इस में खुद को वायरस, बैक्टीरिया, अन्य जीवाणुओं और स्वस्थ रहने के लिए हाथों को अच्छे से धोना बेहद जरूरी है। हालांकि ज्यादा हाथ धोने के कारण कई लोगों की शिकायत होती है, कि बार-बार हाथ धोने से स्किन ड्राई हो जाती है। लेकिन अगर आप ऑर्गेनिक साबुन का इस्तेमाल करते हैं, तो यह आपकी ड्राई हैंड की समस्या को दूर कर सकती है।
आज हम आपको कुछ ऐसे ही साबुन बना रही आत्मनिर्भर महिला विभा देवी के बारे में बताएंगे। दरअसल भोजपुर जिले के उदवंतनगर थाना अंतर्गत सरथुआ गांव में एक महिला जो आत्मनिर्भर होकर घर में साबुन का निर्माण करती है। इतना ही नहीं बल्कि अपने गांव की कुछ महिलाओं और लड़कियों को भी इस आर्गेनिक साबुन बनाने की गुर को सीखा रही है। ताकि अन्य महिलाएं, लडकियां किसी पर बोझ ना बनकर खुद आत्मनिर्भर बने ।
7 प्रकार की बनाती है साबुन
विभा देवी ने बताया कि वो घर में सोप बेस की मदद से सात प्रकार की साबुन बनाती है। सबसे पहले लूफा की साबुन तैयार करती है, जिसे बनाने के लिए ननुआ के छिलके का इस्तमाल करती है। उन्होंने बताया कि नेनुआ के छिलके को छोटा छोटा काट कर साबुन के अंदर डाल दिया जाता है। इससे शरीर पर जमे मैल, गंदगी को छुड़ाने के लिए अन्य किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती।
इसी प्रकार नीम और तुलसी के साबुन जिसमें नीम और तुलसी के पत्ते को सुखाकर बनाती है। उसके बाद उपटन के साबुन बनाती है। जिसमें बेसन, हल्दी, चंदन पाउडर और मुल्तानी मिट्टी डालती है। फिर चारकोल के साबुन तैयार करती है। उन्होंने बताया कि चारकोल का साबुन चेहरे के लिए सबसे ज्यादा फायदामंद है। इसे लगाने से चेहरे पर पिंपल्स नहीं आते है। उसके बाद विभा गुलाब का साबुन बनाती है। जिसे बनाने के लिए वो गुलाब फूल का इस्तमाल करती है। इसी प्रकार एलोवेरा और संतरा के साबुन भी बनाती है।
20 मिनट में तैयार होते है साबुन
भोजपुर की महिला विभा देवी ने बताया कि उनको यह सभी प्रकार के साबुन बनाने में करीब 20 मिनट का स्माई लग जाता है। साबुन बनाने के दौरान विभा बेस, कलर, सुगंधी, तील तेल, जाफर का इस्तमाल करती है। सबसे पहले एक बड़े से पतीले में पानी भरी जाती है। उसके बाद उसके अंदर एक छोटा पतीला रख दिया जाता है। उसके बाद छोटे वाले पतीले में सोप बेस का टुकड़ा काट कर डाल दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि बेस को पिछले तक छोलनी से चलाया जाता है। उसके बाद इसमें कलर, सुगंधी, तील तेल और जाफर मिलाकर चलाया जाता है। करीब 20 मिनट तक क्रियाकलाप करने के बाद उसे एक सांचे में डाल दिया जाता है। वहीं ठंडा होने के बाद साबुन तैयार हो जाती है। विभा देवी ने बताया कि वो महीने में करीब 1300 से 1500 साबुन बनाती है। जिसकी कीमत 50 रुपए प्रति साबुन है। हर महीने में करीब 25 से 28 हजार रुपए आसानी से कमा लेती है ।
तीन महीने ट्रेनिंग करने के बाद गांव में महिलाओं को कर रही जागरूक
सरथुआ गांव निवासी रमेश प्रसाद की पत्नी विभा देवी ने बताया कि हम लोग सभी आत्मनिर्भर होकर काम कर रहे है। कुछ अलग करने के लिए घर का काम करने के बाद दो तीन घंटे साबुन बनाने में लगाते है और दिनभर में करीब 50 से 100 साबुन बना लेते है। उन्होंने बताया कि उनके साथ गांव की लगभग 7 महिलाएं और कुछ लड़कियां इस हुनर को सीख रही है। उन्होंने बताया कि बामिती पटना में उन्होंने तीन महीने जाकर साबुन बनाने का हुनर सीखा था। अब अपने गांव में सीखा रही है। वहीं साबुन बनाने के बाद वो जिले के हर एक कोने तक साबुन को पहुंचाना चाहती है। फिलहाल वो खुद साबुन की बिक्री कर रही है और उनके साथ उनके सहयोगी हर संभव मदद कर रहे है। वहीं रमेश प्रसाद एक निजी कंपनी (सूरत) में काम करते है।
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