सभ्यता की शुरुआत से ही जीवन-मरण का रहस्य मनुष्यों को उद्वेलित करता रहा है। बालक नचिकेता ने भी इसके लिए गृह त्याग किया था। जीवन-मरण के रहस्य को जानने के लिए ही राजकुमार सिद्धार्थ ने गृह-त्याग किया था और ज्ञान प्राप्त कर सम्यक संबंद्ध बने। वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों में इस रहस्य पर काफी कुछ कहा गया है। कुछ ऐसा ही जीवन-मरण के रहस्य को जानने की उत्कंठा ने एक एमटेक पासआउट छात्र को पहले ब्रह्मचर्य व
इसके बाद संन्यास की ओर खींच लिया। गया के रसलपुर निवासी 28 वर्षीय विकास ने ऋषिकेश में पहले ब्रह्मचर्य व्रत लिया और बाद में सन्यास धर्म अपनाया। उन्होंने कहा, बहुत विचार के बाद पहले ब्रह्मचर्य और बाद में सन्यास धर्म ग्रहण किया है। उन्होंने कहा, ईशोपनिषद के पहले मंत्र ‘‘ईशावास्यमिदंसर्वंयत्किंच जगत्यां-जगत’’ से लेकर अठारहवें मंत्र ‘‘अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विध्वानि देव वयुनानि विद्वान’’ तक शब्द-शब्द में ब्रह्म-वर्णन सहित अन्य है। इसमें एक ही स्वर है- ब्रह्म का, ज्ञान का, आत्मज्ञान का। बस अब उनके जीवन का लक्ष्य है, आत्म ज्ञान का, जीवन के रहस्य को जानना और समाज के ऋण को चुकाना है।
साधुओं के साथ रहने से आया बदलाव
उन्होंने बताया, एमटेक के बाद इंटर्न छोड़कर 2017 में हरिद्वार चला गया। वहां जाने तक साधु बनना जीवन का उद्देश्य नहीं था। आरएसएस के शिविर में हिस्सा लिया। यहीं से जीवन का बदलाव शुरू हुआ। वहां वेद व उपनिषद पढ़ने लगा। साधुओं के साथ रहने पर बदलाव आने लगा। जीवन क्या है व उसका उद्देश्य क्या है, जानने की इच्छा जागी। तब 2018 में ब्रह्मचर्य व्रत लिया और ऋषिकेश के महाराज जी से दीक्षा लेकर कृष्णायन देशी गौ रक्षा शाला में रहने लगा। अध्ययन के दौरान आत्मनिरीक्षण किया और मूल्यांकन भी।
परिवार ने बाद में दी स्वीकृति
उन्होंने बताया, ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद मां व पिताजी के अलावा प्रोफेसर व मित्रों ने गृहस्थ जीवन में लौटने को काफी समझाया, लेकिन मन नहीं बदला। धीरे-धीरे सभी ने बुझे मन से स्वीकृति प्रदान कर दी। मां धार्मिक रूचि की रही है, उन्होंने हमारी बात को समझा। उन्होंने कहा- जहां रहो खुश रहो व अपने लक्ष्य को पूरा करो।
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