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जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आवास पर चल रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवद् कथा सह ज्ञान का समापन सुदामा चरित्र के साथ हुआ। काशी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य डॉ. पुंडरिक शास्त्री जी महाराज ने कथा को विश्राम दिया।
अंतिम दिन सुदामा चरित्र पर हुई कथा ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। कथावाचक ने बताया कि सुदामा वह जीव है जिसने अपने प्रेम की रस्सी में परमात्मा को बांधा। सुदामा चरित्र पूर्ण समर्पण से भरा पड़ा है। परमात्मा के प्रति समर्पण की लीला ही सुदामा चरित्र की लीला है।
परमात्मा समर्पण से प्रसन्न होते है। स्वामी जी ने बताया कि भगवान को कुछ नहीं चाहिए। भगवान केवल प्रेम के प्यासे है। प्रेम ही सभी शास्त्रों का सार है। महाराज जी ने कहा कि जब तक जियो अपना चाराें पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष ठाकुर जी के चरणों में समर्पित करे। समर्पित नहीं करेंगे तो भगवान की कृपा मिलने वाली नहीं। भगवान उसी पर कृपा करते है जो सर्वस्व प्रभु को समर्पित करता है।
परमात्मा की प्राप्ति परीक्षित मोक्ष
कथावाचक डॉ. शास्त्री ने परीक्षित मोक्ष की कथा से भी श्रोताओं को अवगत कराया। कहा कि परीक्षित वह है जो अपने जीवन में परमात्मा की प्रतीक्षा करता है। परमात्मा की प्राप्ति परीक्षित मोक्ष है। कथा विश्राम के समय कहा कि भगवान का नाम ही जीवन के सभी कार्यों का श्रेय सर्वस्व है। महाराज जी ने कहा कि भगवान के नाम से मुक्ति मिलती है। भगवान का दिव्य ग्रंथ जो मुक्ति को प्रदान करने वाला है। भागवद् परमहंस संगीता है। भागवद् में भगवान को प्रकट कराने में समर्थ है।
रिटायरमेंट के बाद भी कराएंगे कथा: डीजे
जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रेम रंजन मिश्रा ने कथा के समापन के बाद कहा कि श्रीमद् भागवद् कथा के आयोजन से असीम शांति मिली है। रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन राशि से भी कथा का आयोजन करेंगे। इस बीच साहित्यकारों के साथ-साथ पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। बता दें कि श्रीमद् भागवद् कथा सह ज्ञान यज्ञ के समापन के बाद 24 फरवरी को हवन व भंडारा का भी आयोजन किया जाएगा। इधर, कथा सुनने के लिए भक्तों की भीड़ लगी रही।
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