सरकारी अस्पतालों की पहचान अब जैव चिकित्सा अपशिष्ट (बायो मेडिकल वेस्ट) प्रबंधन के मानकों पर की जाएगी। जिसके मुताबिक उन्हें न सिर्फ इसके उचित इंतजाम किया जाएगा, साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र भी लिया जाएगा। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में पारित आदेश के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिमाह एक करोड़ रुपए वसूला जा सकता है। कानून के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग के कार्यपालक निदेशक ने सिविल सर्जन को पत्र जारी किया है। हर अस्पताल, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं स्वास्थ्य उपकेंद्र को शीघ्र ही प्राधिकार प्राप्त करने का अनुरोध किया गया है। साफ किया गया है कि सभी अस्पतालों के लिए एक नोडल अधिकारी नामित किया जाएगा। नोडल अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लाइसेंस हासिल करें। निर्देश के अनुसार अस्पताल के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को टीकाकरण के जरिए प्रतिरक्षित और जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन पर प्रशिक्षण भी मुहैया कराना होगा।
बायो-मेडिकल वेस्ट का प्रबंधन पर्यावरण को रखता है स्वच्छ, पशु को भी रहता है खतरा
जैव चिकित्सा अपशिष्ट से होने वाले संभावित खतरों एवं उसके उचित प्रबंधन जैसे- अपशिष्टों का सेग्रिगेशन, कलेक्शन भंडारण, परिवहन एवं बायी मेडिकल वेस्ट का उचित प्रबंधन जरूरी है, इसके सही तरीके से निपटान नहीं होने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। अगर इसका उचित प्रबंधन ना तो मनुष्य के साथ साथ पशु- पक्षियों को भी इससे खतरा है। जैव चिकित्सा अपशिष्टों को उनके कलर-कोडिंग के अनुसार ही सेग्रिगेशन किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में सीएस डाक्टर अशोक चौधरी ने कहा कि मानक के अनुरूप स्वास्थ्य संस्थान तैयार किए जाएंगे। इसकी तैयारी की जा रही है।
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