कैमूर में पेट की आग बुझाने के लिए लोगों को क्या-क्या जतन करना पड़ता है? कितने कष्ट झेलने पड़ते हैं? यह बात जो इन कार्यों को कर रहे हैं, उनसे बेहतर कोई नहीं सकता है। इसकी एक बानगी जिले के चैनपुर प्रखंड में देखने को भी मिली है। दरअसल, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मऊ निवासी 5 परिवार हर साल ठंड के मौसम में अपने रोजी-रोटी के लिए बिहार आते हैं। खुले आकाश के नीचे मड़ई डालकर अपने परिवार के साथ रहते हैं और यहां टोकरी बनाने का काम करते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय टोकरी बनाकर बेचना है।
एक टोकरी में 4 लोगों की मेहनत
जब इस बारे में टोकरी बनाने के कार्य में जुटे बबलू दरकार से बात की गई तो उन्होंने बताया की टोकरी बनाने के कार्य में चार लोगों की सहभागिता होती है। पूरे दिन में 4 लोग मिलकर लगभग 10 टोकरी बनाते हैं। प्रत्येक टोकरी का मूल्य 150 रुपये हैं। इसी मूल्य पर हमलोग टोकरी बेचते हैं। बबलू ने यह भी बताया की टोकरी को लोग हमारे यहां खरीदने आते हैं और जो बचता है इसे हमलोग घूम-घूम कर भी बेचते हैं। बरसात का मौसम आते ही हम सभी लोग वापस अपने-अपने गांव चले जाते हैं।
मड़ई डालकर रहता है पूरा परिवार
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मऊ निवासी ये 5 परिवार जो प्रत्येक वर्ष चैनपुर प्रखंड में ठंड के समय पहुंचते हैं। खुले आकाश के नीचे कड़ाके की ठंड में मड़ई डालकर अपने परिवार के साथ रहते हैं। पूरे ठंड परिवार के लोग टोकरी बनाने का काम करते हैं। टोकरी बनाकर बेचना ही इनका मुख्य व्यवसाय है। इसी व्यवसाय पर पूरा परिवार निर्भर है। टोकरी बनाने के लिए बांस भी लोग यहीं से खरीदते हैं। एक बांस की कीमत 400 रुपये पड़ती है और उसमें 6 टोकरी तैयार करते हैं। एक साधारण सी टोकरी बनाने में कितनी मेहनत लगती है। इनसे बेहतर कौन जान सकता है?
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