अरुणा, ये तीनों (बेटे) हमारी निशानी हैं। इन्हें संभाल कर रखना और कुछ बनना। 1980 में लंबी बीमारी से हुई मौत से पहले टीपी कॉलेज के केमेस्ट्री के शिक्षक प्रो. केएन राय ने ये बातें अपनी पत्नी अरुणा राय से कही थी। उस वक्त उनका बड़ा बेटा गगन गुंजन (दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं) साढ़े 6 साल का, मंझला बेटा तपन सुमन (सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट) 5 साल का और छोटा बेटा सौरभ स्वामी (कमिश्नर) मात्र ढाई साल का था। आज भी जब अरुणा राय पीछे मुड़कर देखती हैं, तो उन्हें अपने संघर्ष के दिनों की हर एक घटना की याद ताजा हो जाती है। असमय पति के निधन के बाद उन्होंने अपना सबकुछ खो दिया था। शिवाय पति को दिए आश्वासन के। यही उनकी ताकत भी थी और जमा पूंजी भी। 9 साल के बाद उन्हें अनुकंपा पर क्लर्क की नौकरी लगी। पति की मौत के बाद के इन 9 सालों में उन्होंने जो कष्ट सहे, उसके लिए शब्द नहीं हैं। वे कहती हैं कि मधेपुरा शहर के टीपी कॉलेज के पास ही उनका अपना पुराना घर और लॉज था। इसी बीच बड़ा बेटा गगन का चयन सैनिक स्कूल कपूरथला के लिए हो गया। उस वक्त 10 हजार रुपया सलाना फीस लगना था। उनकी परेशानी से अवगत होकर उस समय सैनिक स्कूल के प्रिंसिपल रहे विंग कमांडर एसके शर्मा ने उनके बेटे का दाखिला ले लिया। बाद में बेटे को छात्रवृति भी मिलने लगी।
विपत्ति आने पर हर किसी ने की मदद
अरुणा राय कहती हैं कि बच्चों की परवरिश और पढ़ाई के दिनों में उन्हें कई तरह के लोन पड़ा, पारिवारिक जमीन भी बेचना पड़ा। बावजूद कई बार शुभचिंतकों से आर्थिक मदद भी लेना पड़ा। जिसे उन्होंने बाद में किश्तों में लौटा दिया। वे कहती हैं कि अपनी मंजिल को पाने को कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय होना जरूरी है।
आईएएस की मां कहकर पुकारते थे शिक्षक
स्कूल में जब भी वह जाती तो शिक्षक उन्हें आईएएस की मां कहकर संबोधित करते थे। हालांकि बड़ा बेटा आईएएस नहीं बन पाया। वे, उनसे छोटे दो भाई की पढ़ाई में आने वाले खर्च को भी देख रहे थे। वे अब तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। लेकिन मंझला बेटा तपन सुमन उर्फ गब्बर जी मधेपुरा के टीपी कॉलेज और पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई करते हुए सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट बन गए। उनकी पत्नी भी इसी पद पर हैं। जबकि छोटा बेटा सौरभ स्वामी सीए कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा भी पास की। वे भी प्रोविडेंट फंड में इनदिनों कमिश्नर हैं। उनकी पत्नी डॉक्टर हैं।
पंचायत की राजनीति में भी हैं सक्रिय : अरुणा कहती हैं कि उन्होंने वर्ष 2010 में नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली। वह 5 साल तक जिला परिषद सदस्य भी रहीं। इस उम्र में भी वे सक्रिय रहती हैं। साथ ही मांओं से अपील करती हैं कि बच्चों की अच्छे तरीके से परवरिश करें। बाधाएं तो आती ही रहती हैं।
8 माह तक सहा बेटे के लापता होने का दुख
अरुणा बताती हैं कि उनका छोटा बेटा सौरभ 1992 में भागलपुर के सीएमएस स्कूल में पढ़ता था। अचानक से किसी ने उसे बहलाफुसला लिया। आठ माह तक उसकी कोई खबर नहीं थी। सभी काफी परेशान थे। इसी दौरान एक दिन बेटे ने खत लिखा।
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